त्रिषष्टितम (63) अध्याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 48-62 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर रानी के पास अपना वीर्य भेजने का उपयुक्त अवसर देख उन्होंने उस वीर्य को पुत्रोत्पत्तिकारक मन्त्रों द्वारा अभिमंत्रित किया। राजा वसु धर्म और अर्थ के सूक्ष्म तत्त्व को जानने वाले थे। उन्होंने अपने विमान के समीप ही बैठे हुए शीघ्रगामी श्वेन पक्षी (बाज) के पास जाकर कहा- ‘सौम्य! तुम मेरा प्रिय करने के लिये यह वीर्य मेरे घर ले जाओ और महारानी गिरिका को शीघ्र दे दो; क्योंकि आज ही उनका ॠतु काल है।' बाज वह वीर्य लेकर वड़े वेग के साथ तुरन्त वहाँ से उड़ गया। वह आकाशचारी पक्षी सर्वोत्तम वेग का आश्रय लेकर उड़ा जा रहा था, इतने में एक दूसरे बाज ने उसे आते देखा। उस बाज को देखते ही उसके पास मांस होने की आशंका से दूसरा बाज तत्काल उस पर टूट पड़ा। फिर वे दोनों पक्षी आकाश में एक दूसरे को चोंच मारते हुए युद्ध करने लगे। उन दोनों के युद्ध करते समय वह वीर्य यमुना जी के जल में गिर पड़ा। अद्रिका नाम से विख्यात एक सुन्दरी अप्सरा ब्रह्मा जी के शाप से मछली होकर वहीं यमुना जी के जल में रहती थी। बाज के पंजे से छूटकर गिरे हुए वसु सम्बन्धी उस वीर्य को मत्स्यरुपधारिणी अद्रिका ने वेगपूर्वक आकर निगल लिया। भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात दसवाँ मास आने पर मत्स्यजीवी मल्लाहों ने उस मछली को जाल में बांध लिया और उसके उदर को चीर कर एक कन्या और एक पुरुष निकाला। यह आश्चर्यजनक घटना देखकर मछेरों ने राजा के पास जाकर निवेदन किया- ‘महाराज! मछली के पेट से ये दो मनुष्य बालक उत्पन्न हुए हैं’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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