द्वितीय (2) अध्याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 237-260 का हिन्दी अनुवाद
इसके बाद विचित्र अर्थों से भरे भीष्म पर्व की विषय-सूची कही जाती है, जिसमें संजय ने जम्बूद्वीप की रचनासम्बंधी कथा कही है। इस पर्व में दस दिनों तक अत्यंत भयंकर घोर युद्ध होने का वर्णन आता है, जिसमें धर्मराज युधिष्ठिर की सेना के अत्यंत दु:खी होने की कथा है। इसी युद्ध के प्रारम्भ में महातेजस्वी भगवान वासुदेव ने मोक्षतत्त्व का ज्ञान कराने वाली युक्तियों द्वारा अर्जुन के मोहजनित शोक-संताप का नाश किया था (जो कि भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है)। इसी पर्व में यह कथा भी है कि युधिष्ठिर के हित में संलग्न रहने वाले निर्भय, उदार बुद्धि, अधोक्षज, भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन की शिथिलता देख शीघ्र ही हाथ में चाबुक लेकर भीष्म को मारने के लिये स्वयं रथ से कूद पड़े और बड़े वेग से दौड़े। साथ ही सब शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ गाण्डीवधन्वा अर्जुन को युद्ध भूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने व्यगंय वाक्य के चाबुक से मार्मिक चोट पहँचायी। तब महाधर्नुधर अर्जुन ने शिखण्डी को सामने करके तीखे बाणों से घायल करते हुए भीष्म पितामह को रथ से गिरा दिया। जब कि भीष्म पितामह शरशय्या पर शयन करने लगे। महाभारत में यह छठा पर्व विस्तारपूर्वक कहा गया है। वेद के मर्मज्ञ विद्वान श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने इस भीष्म पर्व में एक सौ सत्रह अध्याय रखे है। श्लोकों की संख्या पाँच हजार आठ सौ चौरासी (5884) कही गयी है। तदनन्तर अनेक वृत्तान्तों से पूर्ण अदभुत द्रोणपर्व की कथा आरम्भ होती है, जिसमें परमप्रतापी आचार्य द्रोण के सेनापति पद पर अभिषिक्त होने का वर्णन है। वहीं यह भी कहा गया है कि अस़्त्र-विद्या के परमाचार्य द्रोण ने दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिये बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा कर ली। इसी पर्व में यह बताया गया है कि संशप्तक योद्धा अर्जुन को रणांगण से दूर हटा ले गये। वहीं यह कथा भी आयी है कि ऐरावतवंशीय सुप्रतीक नामक हाथी के साथ महाराज भगदत्त भी, जो युद्ध में इन्द्र के समान थे, किरीटधारी अर्जुन के द्वारा मौत के घाट उतार दिये गये। इसी पर्व में यह भी कहा गया है कि शूरवीर बालक अभिमन्यु को, जो कभी जवान भी नहीं हुआ था और अकेला था, जयद्रथ आदि बहुत से विख्यात महारथियों ने मार डाला। अभिमन्यु के वध से कुपित होकर अर्जुन ने रणभूमि में सात अक्षौहिणी सेनाओं का संहार करके राजा जयद्रथ को भी मार डाला। उसी अवसर पर महाबाहु भीमसेन और महारथी सात्यकि धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन को ढूँढ़ने के लिये कौरवों की उस सेना में घुस गये, जिसकी मोर्चेबन्दी बड़े-बड़े देवता भी नहीं तोड़ सकते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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