पंचसप्तत्यधिकशततम (175) अध्याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-39 का हिन्दी अनुवाद
गन्धर्व कहता है- उनके यों कहने पर रसोइये ने मांस के लिये खोज की, परंतु जब कहीं भी मांस नहीं मिला, तब उसने दुखी होकर राजा को इस बात की सूचना दी। राजा पर राक्षस का आवेश था, अत: उन्होंने रसोइये से निश्चित होकर कहा- उस ब्राह्मण को मनुष्य का मांस ही खिला दो यह बात उन्होंने बार-बार दुहरायी। तब रसोइया तथास्तु कहकर वध्यभूमि में जल्लादों के घर गया और उनसे निर्भय होकर तुरंत ही मनुष्य का मांस ले आया। फिर उसी को तुरंत विधिपूर्वक रांधकर अन्न के साथ उसे उस तपस्वी एवं भूखे ब्राह्मण को दे दिया। तब उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने तप:सिद्ध दृष्टि से उस अन्न को देखा और यह खाने योग्य नहीं है यो समझकर क्रोधपूर्ण नेत्रों से देखते हुए कहा। ब्राह्मण ने कहा- वह नीच राजा मुझे न खाने योग्य अन्न दे रहा है, अत: उसी मूर्ख की जिह्वा ऐसे अन्न के लिये लालायित रहेगी। जैसा कि शक्ति मुनि ने कहा है, वह मनुष्यों के मांस मे आसक्त हो समस्त प्राणियों का उद्वेगपात्र बनकर इस पृथ्वी पर विचरेगा। दो बार इस तरह की बात कही जाने के कारण राजा का शाप प्रबल हो गया। उसके साथ उनमें राक्षस के बल का समाहित हो जाने के कारण राजा की विवेकशक्ति सर्वथा लुप्त हो गयी। भारत! राक्षस ने राजा के मन और इन्द्रियों को काबू में कर लिया था, अत: उन नृपश्रेष्ठ ने कुछ ही दिनों बाद उस शक्ति मुनि को अपने सामने देखकर कहा- चूंकि तुमने मुझे यह सर्वथा अयोग्य शाप दिया है, अत: अब मैं तुम्हीं से मनुष्यों का भक्षण आरम्भ करुंगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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