पंचसप्तत्यधिकशततम (175) अध्याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)
महाभारत: आदि पर्व:पंचसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-49 का हिन्दी अनुवाद
महर्षि भगवान वसिष्ठ ने मेरुपर्वत के शिखर से अपने आपको उसी पर्वत की शिला पर गिराया; परंतु उन्हें ऐसा जान पड़ा मानो वे रुई के ढेर पर गिरे हो। पाण्डुनन्दन! जब (इस प्रकार) गिरने से भी वे नहीं मरे, तब वे भगवान वसिष्ठ महान् वन के भीतर धधकते हुए दावानल में घुस गये। यद्यपि उस समय अग्नि प्रचण्ड वेग से प्रज्वलित हो रही थी, तो भी उन्हें जला न सकी। शत्रुसूदन अर्जुन! उनके प्रभाव से वह दहकती हुई आग भी उनके लिये शीतल हो गयी। तब शोक के आवेश से युक्त महामुनि वसिष्ठ ने सामने समुद्र देखकर अपने कण्ठ में बड़ी भारी शिला बांध ली और तत्काल जल में कूद पड़े। परंतु समुद्र की लहरों में वेग ने उन महामुनि को किनारे लाकर डाल दिया। कठोर व्रत का पालन करने वाले ब्रह्मर्षि वसिष्ठ जब किसी प्रकार न मर सके, तब खिन्न होकर अपने आश्रम पर ही लौट पड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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