पंचविंशत्यधिकशततम (125) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-35 का हिन्दी अनुवाद
माद्री देवी ने अश्विनी कुमारों से जिन दो पुरुष रत्नों को उत्पन्न किया है, वे ही दोनों महाधनुर्धर नरश्रेष्ठ हैं। इन्हें भी आप लोग देखें। इनके नाम हैं नकुल और सहदेव। ये दोनों भी अनन्त तेज से सम्पन्न हैं। ये नरश्रेष्ठ पाण्डुकुमार किसी से परास्त होने वाले नहीं हैं। नित्य धर्म में तत्पर रहने वाले यशस्वी राजा पाण्डु ने वन में निवास करते हुए अपने पितामह के उच्छिन्न वंश का उद्धार किया है। पाण्डुपुत्रों के जन्म, उनकी वृद्धि तथा वेदाध्ययन आदि देखकर आप लोग सदा अत्यन्त प्रसन्न होंगे। साधु पुरुषों के आचार-व्यवहार का पालन करते हुए राजा पाण्डु उत्तम पुत्रों की उपलब्ध करके आज से सत्रह दिन पहले पितृलोकवासी हो गये। जब वे चिता पर सुलाये गये और उन्हें अग्नि के मुख में होम दिया गया, उस समय देवी माद्री अपने जीवन का मोह छोड़कर उसी अग्नि में प्रविष्ट हो गयी। वह पतिव्रता देवी महाराज पाण्डु के साथ ही पति लोक को चली गयी। अब आप लोग माद्री और पाण्डु के लिये जो कार्य आवश्यक समझे, वह करें। शरण में आयी हुई कुन्ती तथा यशस्वी पाण्डवों को आप लोग यथोचित रूप से अपनाकर अनुग्रहीत करें; क्योंकि यही सनातन धर्म है। ये पाण्डु और माद्री दोनों के शरीर की अस्थियां हैं और ये ही उनके श्रेष्ठ पुत्र हैं, जो शत्रुओं को संतप्त करने की शक्ति रखते हैं। आप माद्री और पाण्डु की श्राद्ध-क्रिया करने के साथ ही माता सहित इन पुत्रों को भी अनुग्रहीत करें। सपिण्डीकरणपर्यन्त निवृत्त हो जाने पर कुरुवंश के श्रेष्ठ पुरुष महायशस्वी एवं सम्पूर्ण धर्मों के ज्ञाता पाण्डु को पितृमेध (यज्ञ) का भी लाभ मिलना चाहिये।' वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! समस्त कौरवों से ऐसी बात कहकर उनके देखते-देखते ही वे सभी तपस्वी मुनि गुह्यकों के साथ क्षण भर में वहाँ से अन्तर्धान हो गये। गन्धर्व नगर के समान उन महर्षियों और सिद्धों के समुदाय को इस प्रकार अन्तर्धान होते देख वे सभी कौरव सहसा उछलकर साधु-साधु कहते हुए बड़े विस्मित हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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