महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 62 श्लोक 52-69

द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 52-69 का हिन्दी अनुवाद


इन्द्र ने महान दक्षिणाओं से युक्त सौ यज्ञों का अनुष्ठान करने के पश्चात वाग्वेत्ताओं में श्रेष्ठ बृहस्पति जी से इस प्रकार पूछा। इन्द्र बोले- वक्ताओं में श्रेष्ठ भगवन! किस दान के प्रभाव से दाता को स्वर्ग से भी अधिक सुख की प्राप्ति होती है? जिसका फल अक्षय और अधिक महत्त्वपूर्ण हो उस दान को ही मुझे बताइये।

भीष्म जी कहते हैं- भारत! देवराज इन्द्र के ऐसा कहने पर देवताओं के पुरोहित महातेजस्वी बृहस्पति ने उन्हें इस प्रकार उत्तर दिया। बृहस्पति ने कहा- वृत्रासुर का वध करने वाले इन्द्र! सुवर्णदान, गौदान, भूमिदान, विद्यादान और कन्यादान- ये अत्यन्त पापहारी माने गये हैं। जो परम बुद्धिमान पुरुष इन सब वस्तुओं का दान करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। प्रभो! देवेन्द्र! जैसा कि मनीषी पुरुष कहते हैं, मैं भूमिदान से बढ़कर दूसरे किसी दान को नहीं मानता हूँ। जो ब्राह्मणों के लिये, गौओं के लिये, राष्ट्र के विनाश के अवसर पर स्वामी के लिये तथा जहाँ कुलांगनाओं का अपमान होता हो, वहाँ उन सबकी रक्षा के लिये युद्ध में प्राण त्याग करते हैं, वे ही भूमिदान करने वालों के समान पुण्य के भागी होते हैं।

विबुधश्रेष्ठ! मन में युद्ध के लिये उत्साह रखने वाले जो शूरवीर रणभूमि में मारे जाकर स्वर्गलोक में जाते हैं, वे सब-के-सब भूमिदाता का उल्लंघन नहीं कर सकते। स्वामी की भलाई के लिये उद्यत हो रणभूमि में मारे जाकर अपने शरीर का परित्याग करने वाले पुरुष पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक में पहुँच जाते हैं; परन्तु वे भी भूमिदाता से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इस जगत में भूमिदान करने वाला मनुष्य अपनी पांच पीढ़ी तक के पूर्वजों का और अन्य छः पीढ़ियों तक पृथ्वी पर आने वाली संतानों का, इस प्रकार कुल ग्यारह पीढ़ियों का उद्धार कर देता है। पुरंदर! जो रत्नयुक्त पृथ्वी का दान करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। राजन! धन-धान्य से सम्पन्न तथा समस्त मनवांछित गुणों से युक्त पृथ्वी का दान करने वाला पुरुष दूसरे जन्म में राजाधिराज होता है; क्योंकि वह सर्वोत्तम दान है।

इन्द्र! जो सम्पूर्ण भोगों से युक्त पृथ्वी का दान करता है, उसे सब प्राणी यही समझते हैं कि यह मेरा दान कर रहा है। सहस्राक्ष! जो सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली और समस्त मनोवांछित गुणों से सम्पन्न कामधेनू-स्वरूपा पृथ्वी का दान करता है, वह मानव स्वर्गलोक में जाता है। देवन्द्र! यहाँ पृथ्वी दान करने वाले पुरुष को परलोक में मधु, घी, दूध और दही की धारा बहाने वाली नदियाँ तृप्त करती हैं। राजा भूमिदान करने से समस्त पापों से छुटकारा पा जाता है। भूमिदान से बढ़कर दूसरा कोई दान नहीं है। जो समुद्रपर्यन्त पृथ्वी को शस्त्रों से जीतकर दान देता है, उसकी कीर्ति संसार के लोग तब तक गाया करते हैं, जब तक यह पृथ्वी कायम रहती है। पुरंदर! जो परम पवित्र और समृद्धिरूपी रस से भरी हुई पृथ्वी का दान करता है, उसे उस भूदान सम्बन्धी गुणों से युक्त अक्षय लोक प्राप्त होते हैं। इन्द्र! जो राजा सदा एश्‍वर्य चाहता हो और सुख पाने की इच्छा रखता हो, वह विधिपूर्वक सुपात्र को भूमिदान दे। पाप करके भी यदि मनुष्य ब्राह्मण को भूमिदान कर देता है तो वह उस पाप को उसी प्रकार त्याग देता है, जैसे सर्प पुरानी कैचुल को।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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