द्विषष्टयधिकद्विशततम (262) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: द्विषष्टयधिकद्विशततम श्लोक 47-55 का हिन्दी अनुवाद
श्रुति में गौओं का अघ्न्या (अवध्य) कहा गया है, फिर कौन उन्हें मारने का विचार करेगा? जो पुरुष गाय और बैलों को मारता है, वह महान् पाप करता है। एक समय की बात है, ऋषियों और यतियों ने राजा नहुष के पास जाकर निवेदन किया कि तुमने माता गौ और प्रजापति वृषभ का वध किया है, नहुष! यह तुम्हारे द्वारा न करने योग्य पाप कर्म किया गया है, तुम्हारे इस कुकृत्य के कारण हम सब लोगों की बड़ी व्यथा हो रही है। जाजले! ऐसा कहकर नहुष के द्वारा प्रसंसित उन महाभाग ऋषियों ने पाप को एक सौ एक रोगों के रूप में परिणत करके समस्त प्राणियों पर डाल दिया, राजा नहुष को भ्रूण हत्यारा बताया और स्पष्ट कह दिया कि हम लोग तुम्हारे यज्ञ में हविष्य की आहुति नहीं देंगे। ऐसा कहकर उन समस्त तत्वार्थ दर्शी महात्माओं ने तपस्या (ध्यान) द्वारा सारी बाते जान लीं और नहुष के अज्ञानवश वह पाप होने के कारण उन्हें निर्दोष पाकर वे सब ऋषि और यति शान्त हो गये। जाजले! इस तरह के अमंगलकारी और भयंकर आचार इस जगत् में बहुत से प्रचलित है; केवल इसलिये कि अमुक कर्मपूर्वजों द्वारा भी किया गया है, तुम चतुर होते हुए भी उसकी बुराई पर ध्यान नहीं देते। इस कर्म का हेतु या परिणाम क्या है ? इस पर विचार करके ही तुम्हें किसी भी धर्म को स्वीकार करना चाहिये। लोगों ने किया है या कर रहे है, यह जानकर उनका अन्धानुकरण नहीं करना चाहिये। जाजले! अब मैं अपने विषय में कुछ निवेदन करता हॅू, उसे सुनो,जो मुझे मारता है तथा जो मेरी प्रशंसा करता है, वे दोनों ही मेरे लिये बराबर हैं। उनमें से कोई भी मेरे लिये प्रिय या अप्रिय नहीं है, मनीषी पुरुष ऐसे ही धर्म की प्रशंसा करते हैं। यही युक्ति संगत है, यति भी इसी का सेवन करते हैं तथा धर्मात्मा मनुष्य अच्छी तरह विचारकर सदा इसी धर्म का अनुष्ठान करते हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में तुलाधार और जाजलि का संवादविषयक दो सौ बासठवॉ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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