चतुरशीतितम (84) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 142-162 का हिन्दी अनुवाद
पितामह सरोवर से सम्पूर्ण जगत को पवित्र करने वाली एक धारा प्रवाहित होती है, जो तीनों लोकों में कुमारधारा के नाम से विख्यात है। उसमें स्नान करके मनुष्य अपने आपको कृतार्थ मानने लगता है। वहाँ रहकर छठे समय उपवास करने से मनुष्य ब्रह्महत्या से छुटकारा पा जाता है। धर्मज्ञ! तदनन्तर तीर्थसेवन में तत्पर मानव महादेवी गौरी के शिखर पर जाये, जो तीनों लोकों में विख्यात है। नरश्रेष्ठ! उस शिखर पर चढ़कर मानव स्तनकुंड में स्नान करे। स्तनकुंड में अवगाहन करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। उस तीर्थ में स्नान करके देवताओं और पितरों की पूजा करने वाला पुरुष अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और इन्द्रलोक में पूजित होता है। तदनन्तर ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक एकाग्रचित्त हो ताम्रारुण तीर्थ की यात्रा करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और ब्रह्मलोक में जाता है। नन्दिनीतीर्थ में देवताओं द्वारा सेवित एक कूप है। नरेश्वर! वहाँ जाकर स्नान करने से मानव नरमेध यज्ञ का पुण्यफल प्राप्त करता है। राजन्! कौशिकी-अरुणा-संगम और कालिका संगम में स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। तदनन्तर उर्वशीतीर्थ, सोमाश्रम और कुम्भकर्णाश्रम की यात्रा करके मनुष्य इस भूतल पर पूजित होता है। कोकामुखतीर्थ में स्नान करके ब्रह्मचर्य एवं संयम-नियम का पालन करने वाला पुरुष पूर्वजन्म की बातों को स्मरण करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। यह बात प्राचीन पुरुषों ने प्रत्यक्ष देखी है। प्राड्नदी तीर्थ में जाने से द्विज कृतार्थ हो जाता है। वह तब पापों से शुद्धचित्त होकर इन्द्रलोक में जाता है। तीर्थसेवी मनुष्य पवित्र ऋषभद्वीप और क्रौंचनिषूदनतीर्थ में जाकर सरस्वती में स्नान करने से विमान पर विराजमान होता है। महाराज! मुनियों से सेवित औद्दालकतीर्थ में स्नान करके मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। परम पवित्र ब्रह्मर्षिसेवित धर्मतीर्थ में जाकर स्नान करने वाला मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता और विमान पर बैठकर पूजित होता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में पुलस्त्य की तीर्थयात्रा से सम्बन्ध रखने वाला चौरासीवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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