चतुरशीतितम (84) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 120-141 का हिन्दी अनुवाद
राजेन्द्र! उसमें निवास करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता। सबको वर देने वाले अविनाशी महादेव रुद्र के समीप जाकर मनुष्यों मेघों के आवरण से मुक्त हुए चन्द्रमा की भाँति सुशाभित होता है। नरेश्वर! वहीं जातिस्मर तीर्थ है; जिसमें स्नान करके मनुष्य पवित्र एवं शुद्धचित्त हो जाता है। अर्थात् उसके शरीर और मन की शुद्धि हो जाती है। उस तीर्थ में स्नान करने से पूर्वजन्म की बातों का स्मरण करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। माहेश्वरपुर में जाकर भगवान् शंकर की पूजा और उपवास करने से मनुष्य सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। तत्पश्चात् सब पापों को दूर करने वाले वामनतीर्थ की यात्रा करके भगवान् श्रीहरि के निकट जाये। उनका दर्शन करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता। इसके बाद सब पापों से छुड़ाने वाले कुशिकाश्रम की यात्रा करे। वहीं बड़े-बडे़ पापों का नाश करने वाली कौशिकी (कोशी) नदी है। उसके तट पर जाकर स्नान करे। ऐसा करने वाला मानव राजसूय यज्ञ का फल पाता है। राजेन्द्र! तदनन्तर उत्तम चम्पकारण्य (चम्पारन) की यात्रा कर। वहाँ एक रात निवास करने से तीर्थयात्री को सहस्र गोदान का फल मिलता है। तत्पश्चात् परम दुलर्भ ज्योष्ठिल तीर्थ में जाकर एक रात निवास करने से मानव सहस्र गोदान का फल पाता है। पुरुषरत्न! वहाँ पार्वती देवी के साथ महातेजस्वी भगवान् विश्वेश्वर का दर्शन करने से तीर्थयात्री को मित्र और वरुण देवता के लोकों की प्राप्ति होती है, वहाँ तीन रात उपवास करने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। पुरुषश्रेष्ठ! इसके बाद नियमपूर्वक नियमित भोजन करते हुए तीर्थयात्री को कन्यासंवेद्य नामक तीर्थ में जाना चाहिये। इससे वह प्रजापति मनु के लोक को प्राप्त कर लेता है। भरतनन्दन! जो लोग कन्यासंवेद्य तीर्थ में थोड़ा-सा भी दान देते हैं, उनके उस दान को उत्तम व्रत का पालन करने वाले महर्षि अक्षय बताते हैं। तदनन्तर त्रिलोकविख्यात निश्चीरा नदी की यात्रा करे। इससे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है और तीर्थयात्री पुरुष भगवान् विष्णु के लोक में जाता है। नरश्रेष्ठ! जो मानव निश्चीरा संगम में दान देते हैं, वे रोग-शोक से रहित इन्द्रलोक में जाते हैं। वहीं तीनों लोकों में विख्यात वसिष्ठ आश्रम है। वहाँ स्नान करने वाला मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता है। तदनन्तर ब्रह्मर्षियों से सेवित देवकूट तीर्थ में जाकर स्नान करे। ऐसा करने वाला पुरुष अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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