एकोनविंशत्यधिकशततम (119) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 61-83 का हिन्दी अनुवाद
भारत! ऐसा कहते हुए शान्तनुनन्दन भीष्म ने पाण्डवों की ओर इस प्रकार देखा, मानो उन्हें भस्म कर डालेंगे। फिर उन्होंने अर्जुन पर एक शक्ति चलायी, परंतु अर्जुन ने तीन बाणों द्वारा उनकी उस शक्ति को तीन जगह से काट गिराया। भरतनन्दन! समस्त कौरवों वीरों के देखते-देखते गंगानन्दन भीष्म ने मृत्यु अथवा विजय इन दोनों में से किसी एक का वरण करने के लिये अपने हाथ में सुवर्णभूषित ढाल और तलवार ले ली। परंतु वे अभी अपने रथ से उतर भी नहीं पाये थे कि अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा उनकी ढाल के सौ टुकडे़ कर दिये, यह एक अद्भुत सी बात हुई। इसी समय राजा युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी- ‘वीरो! गंगानन्दन भीष्म पर आक्रमण करो। उनकी ओर से तुम्हारे मन में तनिक भी भय नहीं होना चाहिये।' तदनन्तर वे पाण्डव सैनिक सब ओर से तोमर, प्रास, बाणसमुदाय, पट्टिश, खंग, तीखें नाराच, वत्सदन्त तथा भल्लों का प्रहार करते हुए एकमात्र भीष्म की ओर दौड़े। तदनन्तर पाण्डवों की सेना में घोर सिंहनाद हुआ। इसी प्रकार भीष्म की विजय चाहने वाले आपके पुत्र भी उस समय गर्जना करने लगे। आपके सैनिक एकमात्र भीष्म की रक्षा और सिंहनाद करने लगे। वहाँ आपके योद्धाओं का शत्रुओं के साथ भयंकर युद्ध हुआ। राजेन्द! दसवें दिन भीष्म और अर्जुन के संघर्ष में दो घड़ी तक ऐसा दृश्य दिखायी दिया, मानो समुद्र में गंगा जी के गिरते समय उनके जल में भारी भंवर उठ रही हों। उस समय एक दूसरे को मारने वाले युद्ध परायण सैनिकों के रक्त से रंजित हो वहाँ की सारी पृथ्वी भयानक हो गयी थी। यहाँ ऊंची और नीची भूमि का भी कुछ ज्ञान नहीं हो पाता था, दसवें दिन के उस युद्ध में अपने मर्मस्थानों के विदीर्ण होते रहने पर भी भीष्म जी दस हजार योद्धाओं को मारकर वहाँ खड़े हुए थे। उस समय सेना के अग्रभाग में खड़े हुए धनुर्धर अर्जुन ने कौरव सेना के भीतर प्रवेश करके आपके सैनिकों को खदेड़ना आरम्भ किया। पाण्डवों तथा अन्य राजाओं ने वज्र के समान बाणों द्वारा आपकी सेनाओं को बलपूर्वक पीड़ित किया। वहाँ हमने पाण्डवों का यह अदभुत पराक्रम देखा कि उन्होंने अपने बाणों की वर्षा से भीष्म का अनुगमन करने वाले समस्त योद्धाओं को मार भगाया। राजन! उस समय श्वेतवाहन कुन्तीपुत्र धनंजय से डरकर उनके तीखे अस्त्र-शस्त्रों से पीड़ित हो हम सभी लोग रणभूमि से भागने लगे थे। सौवीर, कितव, प्राच्य, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शूरसेन, शिबि, वसाति, शाल्वाश्रय, त्रिगर्त, अम्बष्ठ और केकय- इन सभी देशों के ये सारे महामनस्वी वीर बाणों से घायल और घावों से पीड़ित होने पर भी अर्जुन के साथ युद्ध करने वाले भीष्म को संग्राम में छोड़ न सके। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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