षण्णवतितम (96) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: षण्णवतितम अध्याय: श्लोक 19-31 का हिन्दी अनुवाद
फिर राक्षस ने बहुत-से लोहे के बाणों द्वारा राजा कुन्तिभोज को घायल करके आप की सेना के प्रमुख भाग में बड़ी भयंकर गर्जना की। तदनन्तर सम्पूर्ण सेनाएं पूर्वकाल में एक दूसरे से युद्ध करने वाले इन्द्र और जम्भासुर के समान समरागंण में परस्पर जूझते हुए उन दोनों शूरवीरों को देखने लगीं। भारत! क्रोध में भरे हुए दोनों माद्रीकुमारों ने पहले से वैर बांधने वाले और युद्ध में वेगपूर्वक आगे बढ़ने वाले शकुनि को अपने बाणों से अत्यन्त पीड़ित किया। राजन! इस प्रकार वह महाभयंकर जनसंहार चालू हो गया, जिसकी परिस्थिति को आपने ही उत्पन्न किया है और कर्ण ने उसे अत्यन्त बढ़ावा दिया है। महाराज! आपके पुत्रों ने उस क्रोधमूलक वैर की आग को सुरक्षित रखा है, जो सारी पृथ्वी को भस्म कर डालने के लिये उधत है। पाण्डुकुमार नकुल और सहदेव ने अपने बाणों द्वारा शकुनि को युद्ध से विमुख कर दिया। उस समय उसे युद्ध विषयक कर्तव्य का ज्ञान न रहा और न कुछ पराक्रम का ही भान हुआ। उसे युद्ध से विमुख हुआ देखकर भी महारथी माद्री कुमार नकुल, सहदेव उसके उपर पुन: उसी प्रकार बाणों की वर्षा करने लगे, जैसे दो मेघ किसी महान पर्वत पर जल की धारा बरसा रहे हों। इुकी हुई गांठ वाले बहुत से बाणों की मार खाकर सुबल पुत्र शकुनि वेगशाली घोड़ों की सहायता से द्रोणाचार्य की सेना के पास जा पहुँचा। इधर घटोत्कच ने अपने प्रतिद्वन्द्वी शूर राक्षक अलायुध का जो युद्ध में बड़ा वेगशाली था, मध्यम वेग का आश्रय ले सामना किया। महाराज! पूर्वकाल में श्रीराम और रावण के युद्ध में जैसे आश्रर्यजनक घटना घटित हुई थी, उसी प्रकार उन दोनों राक्षसों का युद्ध भी विचित्र सा ही हुआ। तदनन्तर राजा युधिष्ठिर ने मद्रराज शल्य को पचास बाणों से घायल कर के पुन: सात बाणों द्वारा उन्हें बींध डाला। नरेश्वर! जैसे पूर्वकाल में शम्बरासुर और देवराज इन्द्र में महान युद्ध हुआ था, उसी प्रकार उस समय उन दोनों में अत्यन्त अभ्दुत संग्राम होने लगा। आपके पुत्र विविंशति, चित्रसेन और विकर्ण-ये तीनों विशाल सेना के साथ रहकर भीमसेन के साथ युद्ध करने लगे। इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्तगर्त जयद्रथवध पर्व में द्वन्द्व युद्ध विषयक छियानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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