"महाभारत विराट पर्व अध्याय 21 श्लोक 46-51" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: विराट पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 46-51 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: विराट पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 46-51 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
भारत!  राजा का पिंय होने के कारण कीचक मेरे लिये शोक का कारए हो रहा है। अतः ऐसे कामोन्मत्त पापी को तुम उसी तरह विदीर्ण कर डालो, जैसे पत्थर पर पटककर घड़े को फोड़ दिया जाता है।
 
  
भारत! जो मेरे लिये बहुत से अनर्थों का कारण बना हुआ है, उसके जीते-जी यदि कल सूर्योदय हो जायगा, तो मैं विष घोलकर पी लूँगी; किंतु कीचक के अधीन नहीं होऊँगी। भीमसेन!  कीचक के वश में पड़ने की अपेक्षा तुम्हारे सामने प्राण त्याग देना मेरे लिये कल्याणकारी होगा।
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भारत! राजा का प्रिय होने के कारण [[कीचक]] मेरे लिये शोक का कारण हो रहा है। अतः ऐसे कामोन्मत्त पापी को तुम उसी तरह विदीर्ण कर डालो, जैसे पत्थर पर पटककर घड़े को फोड़ दिया जाता है।
  
वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन्! ऐसा कहकर द्रौपदी भीम के वक्षःस्थल पर माथा टेककर फूट-फूटकर रोने लगी। भीमसेन ने उसको हृदय से लगाकर बहुत सान्त्वना दी।
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भारत! जो मेरे लिये बहुत-से अनर्थों का कारण बना हुआ है, उसके जीते-जी यदि कल सूर्योदय हो जायेगा, तो मैं विष घोलकर पी लूँगी; किंतु कीचक के अधीन नहीं होऊँगी।
  
वह बहुत आर्त हो रही थी, अतः उन्होंने सुन्दर कटिभाग वाली द्रुपदकुमारी को युक्तियुक्त तात्त्विक वचनों से अनेक बार आश्वासन देकर अपने हाथ से उसके आँसू भरे मुँह को पोंछा और क्रोध से जबड़े चाटते हुए मन-ही-मन कीचक का स्मरण किया। तदनन्तर भीम ने दुःख से पीड़ित द्रौपदी ने इस प्रकार कहा।
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[[भीम|भीमसेन]]! कीचक के वश में पड़ने की अपेक्षा तुम्हारे सामने प्राण त्याग देना मेरे लिये कल्याणकारी होगा।
  
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वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन्! ऐसा कहकर [[द्रौपदी]] भीम के वक्षःस्थल पर माथा टेककर फूट-फूटकर रोने लगी। भीमसेन ने उसको हृदय से लगाकर बहुत सान्त्वना दी।
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में द्रौपदी को आश्वासन विषयक इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
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वह बहुत आर्त हो रही थी, अतः उन्होंने सुन्दर कटिभाग वाली द्रुपदकुमारी को युक्तियुक्त तात्त्विक वचनों से अनेक बार आश्वासन देकर अपने हाथ से उसके आँसू भरे मुँह को पोंछा और क्रोध से जबड़े चाटते हुए मन-ही-मन [[कीचक]] का स्मरण किया। तदनन्तर भीम ने दुःख से पीड़ित द्रौपदी ने इस प्रकार कहा।
  
  
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13:47, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण

एकविंश (21) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 46-51 का हिन्दी अनुवाद


भारत! राजा का प्रिय होने के कारण कीचक मेरे लिये शोक का कारण हो रहा है। अतः ऐसे कामोन्मत्त पापी को तुम उसी तरह विदीर्ण कर डालो, जैसे पत्थर पर पटककर घड़े को फोड़ दिया जाता है।

भारत! जो मेरे लिये बहुत-से अनर्थों का कारण बना हुआ है, उसके जीते-जी यदि कल सूर्योदय हो जायेगा, तो मैं विष घोलकर पी लूँगी; किंतु कीचक के अधीन नहीं होऊँगी।

भीमसेन! कीचक के वश में पड़ने की अपेक्षा तुम्हारे सामने प्राण त्याग देना मेरे लिये कल्याणकारी होगा।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन्! ऐसा कहकर द्रौपदी भीम के वक्षःस्थल पर माथा टेककर फूट-फूटकर रोने लगी। भीमसेन ने उसको हृदय से लगाकर बहुत सान्त्वना दी।

वह बहुत आर्त हो रही थी, अतः उन्होंने सुन्दर कटिभाग वाली द्रुपदकुमारी को युक्तियुक्त तात्त्विक वचनों से अनेक बार आश्वासन देकर अपने हाथ से उसके आँसू भरे मुँह को पोंछा और क्रोध से जबड़े चाटते हुए मन-ही-मन कीचक का स्मरण किया। तदनन्तर भीम ने दुःख से पीड़ित द्रौपदी ने इस प्रकार कहा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में द्रौपदी को आश्वासन विषयक इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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