व्यवहार (महाभारत संदर्भ) 2

व्यवहार = कैसा करना चाहिये

  • मा व्यापृत: परकार्येषु भू:।[1]

दूसरों के कामों में हस्तक्षेप मत करो।

  • न युज्यते कर्म युष्मासु हीनम्।[2]

तुम लोग तुच्छ कर्म करो यह उचित नहीं।

  • विषमस्थ: परेषु सामस्थ्यमविच्छति तन्न साधु:।[3]

ऋजु स्वयं कुमर्म करता है औरों में समता खोजता है यह उचित नहीं है।

  • एको न गच्छेदध्वानम्।[4]

अकेले यात्रा न करे।

  • साध्वाचार: साधुना प्रत्युपेय:।[5]

अच्छा व्यवहार करने वाले के साथ अच्छा ही व्यवहार करें।

  • न चत्वरे निशि तिष्ठेत्रिगूढो।[6]

रात में चौराहे पर छिपकर खड़ा न हो।

  • सम्बन्धिषु समां वृत्तिं वर्तस्व।[7]

सम्बंधियों के साथ समान व्यवहार करो।

  • अधार्याणि विशीर्णानि वसनानि।[8]

फटे पुराने कपड़े धारण न करें।

  • ईक्षित: प्रतिवीक्षेत।[9]

मृदु ऋजु को देखे तो ऋजु भी उसे देखे।

  • न पूर्णोस्मीति मन्येत।[10]

कभी अपने आपको पूर्ण न समझे।

  • सुवर्णमपि चामेध्यादाददीताविचारयन्।[11]

अपवित्र स्थान में सोना पड़ा हो तो उसे बिना विचारे उठा लेना चाहिये।

  • तथा च सर्वभूतेषु वर्तितव्यं यथात्मनि।[12]

सभी प्राणियों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा अपने लिये चाहते है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 64.6
  2. उद्योगपर्व महाभारत 25.6
  3. उद्योगपर्व महाभारत 26.9
  4. उद्योगपर्व महाभारत 33.46
  5. उद्योगपर्व महाभारत 37.7
  6. उद्योगपर्व महाभारत 37.28
  7. उद्योगपर्व महाभारत 157.28
  8. शांतिपर्व महाभारत 60.33
  9. शांतिपर्व महाभारत 67.39
  10. शांतिपर्व महाभारत 92.12
  11. शांतिपर्व महाभारत 165.31
  12. शांतिपर्व महाभारत 167.9

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