शरणागत (महाभारत संदर्भ)

  • शरणं च प्रपत्रानां शिष्टा: कुर्वंति पालनाम्।[1]

सज्जन शरणागतों की रक्षा करते हैं।

  • भीतं प्रपत्रं प्रददाति शत्रवे न स त्रातारं लभते त्राणामिच्छन्।[2]

भयभीत शरणागत को त्यागने वाले की संकट में कोई रक्षा नहीं करता।

  • शरणागतस्य कर्त्तव्यमातिथ्यं हि प्रयत्नन:।[3]

शरणागत अतिथि का अच्छी प्रकार सत्कार करना चाहिये।

  • न निष्कृतिर्भवेत् तस्य यो हन्याच्छरणागतम्।[4]

शाणागत को मारने वाले का निस्तार (उद्धार) नहीं होता।

  • विमुञ्चति न पुण्यात्मा शरण्य: शरणागतान्।[5]

शरण देनेवाले पुण्यात्मा शरणागतों को नहीं त्यागतें।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 216.6
  2. उद्योगपर्व महाभारत 12.19
  3. शांतिपर्व महाभारत 146.6
  4. शांतिपर्व महाभारत 149.19
  5. अनुशासनपर्व महाभारत 161.26

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