कर्मगति (महाभारत संदर्भ)

  • कृतं हि योऽभिजानति सहस्रे सोऽस्ति नास्ति च। [1]

हजारों में कोई एक ही होगा जो कर्म को अच्छी प्रकार करना जानता हो।

  • न हि कार्यमकार्यं वा सुखं ज्ञातुं कथंचन। [2]

कर्तव्य और अकर्तव्य का ज्ञान अधिक सरल नहीं है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 32.9
  2. कर्णपर्व महाभारत 69.21

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