- यद्भूतहितमत्यंत तत् सत्यम्।[1]
जो वाक्य सभी प्राणियों के लिये अत्यंत हितकारी हो वही सत्य है।
- सत्यं सत्येन दृश्यते।[2]
सत्य का दर्शन सत्य से ही होता है।
- न तत्सत्यं यच्छलेनाभ्युपेतम्।[3]
जिस बात में कपट है वह सत्य नहीं है।
- सत्यं धर्मस्तपो योग:।[4]
सत्य ही धर्म है, सत्य ही तप है और सत्य ही योग है।
- सत्यं ब्रह्म सनातनम्।[5]
सदा रहने वाला परमेश्वर ही सत्य है।
- सत्यं विद्यास्तथा विधि:।[6]
सत्य ही विद्या है सत्य ही विधि है।
- सद्भाव: सत्यमुच्यते।[7]
सत्ता या वास्तविकता को ही सत्य कहते है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 209.4
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 13.27
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 35.58
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 162.5
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 162.5
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 199.66
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 299.45
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