शील = अच्छा स्वभाव
- अशीलश्चापि पुरुषो भूत्वा भवति शीलवान्।[1]
शील से रहित पुरुष भी कभी शीलवान् हो जाता है।
- शीलेमकपदं सुखम्।[2]
सुख का मुख्य आधार है शील
- सर्वं शीलवता जितम्।[3]
अच्छे स्वभाव वाला सब को जीत लेता है।
- शीलं प्रधानं पुरुषे।[4]
मनुष्य में शील ही सबसे प्रधान गुण है।
- न हि किंचिदसाध्यं वै लोके शीलवताम्।[5]
ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे शील वाले नहीं कर सकते हैं।
- परत्र शीलेन् तु यांति शांतिम्।[6]
परलोक में शील से ही शांति मिलती है।
- पित्र्यं वा भजते मातृजं वा तथोभयम्।[7]
पुरुष या तो माँ या पिता या दोनों के ही शील का अनुशरण करता है
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 207.34
- ↑ वनपर्व महाभारत 313.70
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 34.47
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 34.48
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 124.15
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 286.15
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 48.42
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