दुर्बल (महाभारत संदर्भ)

  • कृतवीर्यकुले जातो निर्वीर्य: किं करिष्यति।[1]

कृतवीर्य के कुल में उत्पन्न होकर भी जो निर्मल है वह क्या करेगा?

  • सर्वैरपि गुणैर्युक्तो निर्वीर्य: किं करिष्यति।[2]

जो निर्बल है वह सर्वगुणसम्पन्न होकर भी क्या कर सकता है।

  • न हि दुर्बलदग्धस्य कुले किंचित् प्ररोहति।[3]

(सताये जानेपर) दुर्बल की हाय से कुल समूल नष्ट हो जाता है।

  • दुर्बलात्मन उत्पन्नं प्रायश्चित्तमिति श्रुति:।[4]

दुर्बल चित्त वालों के लिये प्रायश्चित्त का विधान है यह श्रुति है।

  • दुर्बलोऽत्रावसीदति।[5]

संसार में दुर्बल मनुष्य दु:खी रहता है।

  • मा स्म दुर्बलमासद:।[6]

दुर्बल पर आक्रमण मत करो।

  • तारयेत् कृशदुर्बलन्।[7]

दीन-दुखियों को संकट से पार करो।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 16.9
  2. सभापर्व महाभारत 16.11
  3. शांतिपर्व महाभारत 91.16
  4. शांतिपर्व महाभारत 270.14
  5. शांतिपर्व महाभारत 270.32
  6. शांतिपर्व महाभारत 91.14
  7. अनुशासनपर्व महाभारत 62.77

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः