बुद्धि (महाभारत संदर्भ)

  • येषा शास्त्रानुगा बुद्धिर्न ते मुह्मंति।[1]

जिनकी बुद्धि शास्त्र के अनुशार कर्म करती है वे मोह में नहीं पड़ते।

  • विमृश्य सम्यक् च धिया कुर्वन् प्राज्ञो न सीदति।[2]

बुद्धि से विचार कर के कर्म करने वाला बुद्धिमान् कष्ट में नहीं पड़ता।

  • यतो बुद्धिस्तत: शांति:।[3]

जिसके पास बुद्धि है उसी को शांति प्राप्त है।

  • मा हासी: साम्पराये त्वं बुद्धिं तामृषिपूजिताम्।[4]

ऋषियों द्वारा पूजित अपनी बुद्धि को तुम कभी भविष्य में त्याग मत देना।

  • बुद्धया भयं प्रणुदति।[5]

ऋजु बुद्धि से भय को दूर कर देता है।

  • इंद्रियैर्नियतैर्बुद्धिर्वर्धतेऽग्निरिवेंधनै:।[6]

इंद्रियों को जीत लेने पर बुद्धि वैसे ही बढ़ती है जैसे ईंधन से आग।

  • न हि जातु द्वयोर्बुद्धि: समा भवति कर्हिचित्।[7]

दो मनुष्यों की बुद्धि कभी समान नहीं होती।

  • बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।[8]

बुद्धि के नाश से मनुष्य नष्ट हो जाता है।

  • शनै: शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया।[9]

धैर्य से युक्त बुद्धि के द्वारा धीरे-धीरे उपराम (शांत) हो जाये।

  • व्यक्तं हि जीर्यमाणोऽपि बुद्धिं जरयते नर:।[10]

बूढ़े होने पर निश्चय ही मनुष्य की बुद्धि भी बूढ़ी हो जाते है।

  • कार्यस्य योगार्थं बुद्धिं कुर्वंति मानवा:।[11]

कार्य की सफलता के लिये लोग बुद्धि लगाते हैं।

  • बुद्धिमाज्ञाय प्रज्ञां वापि स्वकां नरा: चेष्टंते।[12]

बुद्धि या विवेक के आधार पर लोग कर्म करते हैं।

  • सर्वस्यात्मा बहुमत:।[13]

सबको अपनी बुद्धि अधिक जान पड़ती है।

  • सर्वं बुद्धौ प्रतिष्ठितम्।[14]

सबकुछ बुद्धि में ही प्रतिष्ठित है।

  • अज्ञातानां च विज्ञानात् सम्बोधाद् बुद्धिरुच्यते।[15]

अज्ञात का परिचय और ज्ञान कराने के कारण बुद्धि को बुद्धि कहते हैं।

  • शास्त्रजां बुद्धिमास्थाय युज्यते नैनसा।[16]

शास्त्र की बुद्धि के अनुसार चलने पर ऋजु को पाप नहीं लगता।

  • आत्मसंयमनं बुद्ध्या परबुद्ध्यावधारणम्।[17]

बुद्धि से मन को वश में करें और कर्तव्य का निश्चय दूसरों की बुद्धि से

  • बुद्धिर्दीप्ता बलवंतं हिनस्ति।[18]

उज्ज्वल बुद्धि बलवान् को जीत लेती है।

  • बुद्धे: पश्चात् कर्म यत्तत् प्रशस्तम्।[19]

बुद्धि से सोचकर जो कर्म किया जाता है वह उत्तम है।

  • ये तु बुद्ध्या हि बलिनस्ते भवंति बलीयस:।[20]

जो बुद्धि के बली होते हैं वे अधिक बली माने जाते हैं।

  • न हि बुद्ध्या समं किंचिद् विद्यते पुरुषे।[21]

पुरुष में बुद्धि के समान कुछ नहीं होता।

  • ते कृच्छ्रं प्राप्य सीदंति बुद्धिर्येषां प्रणश्यति।[22]

जिनकी बुद्धि नष्ट हो जाती है वे कष्ट आने पर उदास हो जाते हैं।

  • बुद्धिमार्ग प्रयातस्य सुखं त्विह परत्र च।[23]

बुद्धिपूर्वक शुभ मार्ग पर चलने से यहाँ और परलोक में सुख मिलता है

  • बुद्धिं प्रयच्छस्व सम्मताम्।[24]

अच्छा परामर्श दो।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 1.244
  2. सभापर्व महाभारत 13.35
  3. सभापर्व महाभारत 73.5
  4. सभापर्व महाभारत 78.17
  5. उद्योगपर्व महाभारत 36.52
  6. उद्योगपर्व महाभारत 129.26
  7. उद्योगपर्व महाभारत 156.3
  8. भीष्मपर्व महाभारत 26.63
  9. भीष्मपर्व महाभारत 30.25
  10. द्रोणपर्व महाभारत 143.16
  11. सौप्तिकपर्व महाभारत 3.10
  12. सौप्तिकपर्व महाभारत 3.16
  13. सौप्तिकपर्व महाभारत 3.4
  14. शांतिपर्व महाभारत 17.24
  15. शांतिपर्व महाभारत 17.21
  16. शांतिपर्व महाभारत 24.14
  17. शांतिपर्व महाभारत 120.18
  18. शांतिपर्व महाभारत 120.42
  19. शांतिपर्व महाभारत 120.42
  20. शांतिपर्व महाभारत 156.12
  21. शांतिपर्व महाभारत 157.12
  22. शांतिपर्व महाभारत 224.10
  23. शांतिपर्व महाभारत 298.36
  24. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 58.13

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