मोह (महाभारत संदर्भ)

  • मा राजन् कल्मषं घोरं प्रविशो बुद्धिनाशनम्।[1]

राजन्! बुद्धि को नष्ट करने वाले भयंकर मोह में मत पड़ो।

  • महामोहे सुखे मग्नो नात्मानवबुध्यते।[2]

महामोह के सुख में मग्न आत्मा को नहीं जान पाता।

  • सुप्रज्ञमपि चेच्छ्ररमृद्धिर्मोहयते नरम्।[3]

समृद्धि महाज्ञानी और शूरवीर को भी मोह में डाल देती है।

  • धर्मानसूयंते बुद्धिमोहांविता नरा:।[4]

बुद्धि में मोह होने के कारण लोग धर्म में दोष देखते हैं।

  • मोहवशमापन्न: क्रूरं कर्म निषेवते।[5]

मोह के वश में मनुष्य क्रूर (दयारहित) कर्म करता है।

  • मुह्मता तु मनुष्येण प्रष्टव्या: सुह्रदो जना:।[6]

भ्रम की स्थिती में हितैषी मित्रों से समाधान पूछ लेना चाहिये।

  • प्रज्ञानाशात्मको मोहस्तथा धर्मार्थनाशक:।[7]

बुद्धि के नाश को ही मोह करते हैं, वह धर्म और धन का नाश करता है।

  • मूलं लोभस्य मोह:।[8]

लोभ का मूल कारण मोह है।

  • अज्ञानप्रभवो मोह: पापाभ्यासात् प्रवर्तते।[9]

अज्ञान से मोह उत्पन्न होता है और पुन: पुन: पाप करने से बढ़ता है।

  • मृत्युमापद्यते मोहात्।[10]

ऋजु मोह से मृत्यु को प्राप्त होता है।

  • यथासंज्ञो ह्मयं सम्यगंतकाले न मुह्मति।[11]

समुचित प्रकार से जान लेने पर मनुष्य को अंत काल में मोह नहीं होता।

  • स्तम्भो भवेद् बाल्यान्नास्ति स्तम्भोऽनुपश्यत:।[12]

अविवेक के कारण मोह होता है, जानने वाले को मोह नहीं होता।

  • न वै प्राज्ञो मुह्मति मोहकाले।[13]

मोह की परिस्थिति आने पर भी ज्ञानी मोह में नहीं पड़ता।

  • मोहाद् विमुक्यस्य भयं नास्ति कुतश्चन।[14]

जो मोह से मुक्त हो गया है उसे कहीं से कोई भय नहीं है।

  • मोहजालावृतो दु:खमिह चामुत्र सोऽनुश्ते।[15]

मोह के जाल में फँसा हुआ इसलोक और परलोक में दु:ख पाता है।

  • मोहान्मरणमप्रियम्।[16]

मोह के कारण मरना अप्रिय लगता है।

  • श्रिया ह्मभीक्ष्णं संवासो दर्पयेत् सम्मोहयेत्।[17]

निरंतर लक्ष्मी पास रहे तो अभिमान और मोह हो जाता है।

  • मोहमेव नियच्छंति कर्मणा ज्ञानवर्जिता:।[18]

ज्ञान से रहित लोग कर्म करके अपना मोह ही बढ़ाते हैं।

  • अभिष्वंगस्तु कामेषु महामोह इति स्मृत:।[19]

भोगों में आसक्ति को महामोह कहा जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 46.24
  2. वनपर्व महाभारत 2.70
  3. वनपर्व महाभारत 181.30
  4. वनपर्व महाभारत 207.68
  5. उद्योगपर्व महाभारत 72.32
  6. सौप्तिकपर्व महाभारत 2.30
  7. शांतिपर्व महाभारत 123.16
  8. शांतिपर्व महाभारत 159.11
  9. शांतिपर्व महाभारत 163.11
  10. शांतिपर्व महाभारत 175.30
  11. शांतिपर्व महाभारत 217.13
  12. शांतिपर्व महाभारत 222.14
  13. शांतिपर्व महाभारत 226.19
  14. शांतिपर्व महाभारत 245.17
  15. शांतिपर्व महाभारत 329.9
  16. शांतिपर्व महाभारत 330.16
  17. अनुशासनपर्व महाभारत 61.20
  18. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 20.7
  19. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 36.32

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