- पूर्वे वयसि तत् उर्याद् येन वृद्ध: सुखं वसेत्।[1]
यौवन में ऐसा कर्म करना चाहिये जिससे अन्तिम समय में सुख से रहें।
- अन्यया यौवने मर्त्यो बुद्ध्या भवति मोहित:।[2]
यौवन में मनुष्य किसी और ही बुद्धि से सम्मोहित रहता है।
- युवैव धर्मशील: स्यादनित्यं खलु जीवितम्।[3]
युवावस्था में ही धर्म में लग जायें, जीवन का पता नहीं, कब तक है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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