बीज (महाभारत संदर्भ)

  • बीजं यत्नेन गोप्यताम्।[1]

बीज की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करो।

  • नाकाले रोहति बीजमुप्तम्।[2]

बिना समय के बोया हुआ बीज नहीं उगता।

  • बीजान्यग्न्यपदग्धानि न रोहंति।[3]

आग में जले भुने बीज उगते नहीं।

  • नाबीजाज्जायते किंचिद्।[4]

बिन बीज के कुछे उत्पन्न नहीं होता।

  • बीजैर्यज्ञेषु यष्टव्यमिति वैदिकी श्रुति:।[5]

बीजों से यज्ञ करना चाहिये यह वैदिक श्रुति है।

  • बीजाद् बीजं प्रभवति।[6]

बीज से ही बीज प्रकट होता है।

  • क्षेत्रबीजसमागोगात् तत: सस्यं समृद्ध्यते।[7]

खेत और बीज के सन्योग से ही अन्न उत्पन्न होता है।

  • न ह्मनुप्तं प्ररोहति।[8]

बोये बिना अंकुर पैदा नहीं होत।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 106.22
  2. शांतिपर्व महाभारत 25.11
  3. शांतिपर्व महाभारत 211.17
  4. शांतिपर्व महाभारत 290.12
  5. शांतिपर्व महाभारत 337.4
  6. अनुशासनपर्व महाभारत 6.5
  7. अनुशासनपर्व महाभारत 6.8
  8. अनुशासनपर्व महाभारत 163.11

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