लोकोक्ति (महाभारत संदर्भ)

  • छिन्नमूलो ह्यधिष्ठाने सर्वे तज्जीविनो हता:।[1]

मूल आधार नष्ट होते ही उसका आश्रय लेने वाले सभी नष्ट हो जाते है

  • नादारुणि पतेच्छस्त्रं दारुण्येतत्रिपात्यते।[2]

पत्थर या लोहे पर शस्त्र नहीं चलता लकड़ी पर ही चलता है।

  • बद्धं सेतुं को नु भिंद्याद् धमेच्छांतं च पावकम्।[3]

बने बनाये पुल को कौन तोड़ेगा, वैर की बुझी आग में कौन हवा देगा।

  • भेअसम्भवे हेममयस्य जंतोस्तथापि रामो लुलु मृगाय।[4]

प्राणी का शरीर सोने का नहीं होता है फिर भी राम को मृग का लोभ हुआ।

  • प्रक्षालनाद्धि पंकस्य दूरादस्पर्शनं वरम्।[5]

कीचड़ को धोने से अच्छा है उससे दूर रहना।

  • को हि तत्रैव भुक्त्वान्नं भेत्तुमर्हति।[6]

जिस बर्तन में खाये उसी में छेद कौन कर सकता है?

  • धूमायंते व्यपेतानि ज्वलंति संहितानि च धृतराष्ट्रोल्मुकानि।[7]

धृतराष्ट्र! लकड़ियां दूर रहें तो धुआँ देती हैं, साथ होने पर ही जलती हैं।

  • सुपुरो मूषिकाञ्जलि:।[8]

चूहे की अञ्जलि सरलता से ही भर जाती है।

  • न मूलफलभक्षस्य विष्ठा भवति लोमशा।[9]

फल मूल खाने वाले की विष्ठा में बाल (केश) नहीं होते।

  • वराहस्य शुनश्च युध्यतोस्तयोरभावे स्वपचस्य लाभ:।[10]

सूअर और कुत्ते के युद्ध में जो भी मरे चाण्डाल को लाभ ही है।

  • बिल्वं बिल्वेन भेदय।[11]

बेल को बेल से फोड़ो। (काँटा से काँटा निकालो)

  • सर्वेषामृद्धिकामानामन्ये रथपुर:सरा:।[12]

समृद्धि सभी चाहते हैं परंतु कुछ लोग ही रथ पर चढ कर चलते हैं।

  • सर्वाण्येवापिधीयंते पदजातानि कौञ्जरे।[13]

हाथी के पैर में सब के पैर्।

  • न ह्येकचक्रं वर्तते।[14]

एक पहिये से गाड़ी नहीं चलती। (एक हाथ से ताली नहीं बजती।)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 139.17
  2. सभापर्व महाभारत 73.5
  3. सभापर्व महाभारत 75.5
  4. सभापर्व महाभारत 76.5
  5. वनपर्व महाभारत 2.49
  6. आदिपर्व महाभारत 219.27
  7. उद्योगपर्व महाभारत 36.60
  8. उद्योगपर्व महाभारत 133.9
  9. उद्योगपर्व महाभारत 160.39
  10. द्रोणपर्व महाभारत 182.8
  11. शांतिपर्व महाभारत 105.11
  12. शांतिपर्व महाभारत 331.38
  13. शांतिपर्व महाभारत 245.18
  14. अनुशासनपर्व महाभारत 121.14

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