प्रयत्न (महाभारत संदर्भ)

  • यतस्य यत्नवांस्तात संतानाय कुलस्य।[1]

प्रयत्नशील रहकर कुल की संतान के लिये यत्न करो।

  • महान् भवत्यनिर्विण्ण: सुखं चानंत्यमश्नुते।[2]

उद्योग में लगे रहने वाला महान् हो जाता है और अनंत सुख पाता है।

  • यत्नाद् धर्म संचिनुयाच्छनै:।[3]

धीरे से यत्नपूर्वक धर्म का संग्रह करें।

  • आत्ममोक्षनिमित्तं वै यतेत मतिमान् नर:।[4]

बुद्धिमान् मनुष्य अपनी मुक्ति के लिये प्रयत्न करे।

  • अमोघप्रयत्नेन मनो ज्ञाने निवेशयेत्।[5]

मन को ज्ञान की प्राप्ति के ऐसे साधन में लगायें जो निष्फल ना हो।

  • उन्मज्जनस्यार्थे प्रयतेत विचक्षण:।[6]

बुद्धिमान् (भवसागर से) पार होने का प्रयत्न अवश्य करे।

  • नित्यं मन: समाधाने प्रयतेत विचक्षण:।[7]

कुशल व्यक्ति अपने मन को एकाग्र करने का सदा प्रयत्न करे।

  • तथा प्रयत्नं कुर्वीत यथा मुच्यते संश्रयात्।[8]

ऐसा प्रयत्न करना चाहिये जिससे संसारसागर से मुक्ति मिले।

  • यस्मिन् न शक्यते कर्तुं यत्नस्तन्नानुचिंतयेत्।[9]

जो कार्य किसी यत्न से न हो सकता हो उसकी चिंता ही छोड़ दे।

  • कृतप्रयत्नाफलाश्चैव दृश्यंते शतशो नरा:।[10]

सैकड़ों मनुष्य प्रयत्न करके भी विफल देखे जाते हैं।

  • अयत्नेनैधमानाश्चैव दृश्यंते बहवो जना:।[11]

बिना प्रयत्न के अनेक लोगों की वृद्धि होती देखी जाती है।

  • यदि यत्नो भवेन्मर्त्य: स सर्वं फलमाप्नुयात्।[12]

यदि यत्न अवश्य ही सफल होता तो नर यत्न से सबकुछ पा लेता।

  • कोशस्य निचये यत्नं कुर्वीथा न्यायत: सदा।[13]

कोश (धन) का संग्रह करने के लिये सदा न्यायोचित यत्न करना चाहिये।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 13.24
  2. उद्योगपर्व महाभारत 39.57
  3. उद्योगपर्व महाभारत 40.18
  4. शांतिपर्व महाभारत 174.5
  5. शांतिपर्व महाभारत 215.9
  6. शांतिपर्व महाभारत 235.22
  7. शांतिपर्व महाभारत 290.21
  8. शांतिपर्व महाभारत 293.20
  9. शांतिपर्व महाभारत 330.11
  10. अनुशासनपर्व महाभारत 163.3
  11. अनुशासनपर्व महाभारत 163.3
  12. अनुशासनपर्व महाभारत 163.4
  13. आश्रमवासिकपर्व महाभारत 5.36

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