- यस्मादुद्विजले लोक: कथं तस्य भवो भवेत्।[1]
जिससे लोग पीड़ित रहते हैं उसको ऐश्वर्य कैसे मिल सकता है?
- न ह्यात्मपरिभूतस्य भूतिर्भवति शोभना।[2]
जो अपना ही अनादर करता है उसे उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होता।
- उत्थातव्यं जागृतव्यं योक्तव्यं भूतिकर्मसु।[3]
उठ कर, सजग होकर ऐश्वर्य के कर्मों में लग जाना चाहिये।
- कल्याणमनुकर्तव्यं पुरुषेण बुभूषता।[4]
ऐश्वर्य के इच्छुक को लल्याणकारी कर्म करना चाहिये।
- योगैश्वर्यमतिक्रांतो यो निष्क्रामति मुच्यते। [5]
योग के ऐश्वर्य को जो त्याग देता है वह मुक्त हो जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 28.32
- ↑ वनपर्व महाभारत 32.58
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 135.29
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 152.25
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 236.40
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