व्यसन = विपत्ति
- सम्यक्सद्धर्ममूला वै व्यसने शान्तिरुत्तमा। [1]
संकट का वही समाधन अच्छा है जो धर्म के अनुकूल हो।
- चक्रवत्परिवर्तन्ते ह्यर्थाश्च व्यसनानि च। [2]
धन और व्यसन (आपदा) चक्र की तरह घूमते रहते हैं।
- वर्तेथा यदि धर्मेण न त्वां व्यसनमाव्रजेत्। [3]
यदि धर्म का पालन किया होता तो तुम पर यह संकट नहीं आता।
- मग्नस्य व्यसने कृच्छ्रे धृति श्रेयस्करी। [4]
कठिन संकट में फंसने पर धैर्य धारण करने में ही कल्याण है।
- न हि व्यसनमासाद्य सीदन्ति कृतबुद्धय:।[5]
बुद्धिमान् लोग संकट आने पर खिन्न नहीं होते।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 37.20
- ↑ विराटपर्व महाभारत 20.4
- ↑ द्रोणपर्व महाभारत 65.8
- ↑ शान्तिपर्व महाभारत 227.3
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 61.22
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