धर्मज्ञानी (महाभारत संदर्भ)

  • आपत्सु यो धारयति धर्म धर्मविदुत्तम:।[1]

आपत्ति में भी धर्म का पालन करने वाला ही धर्मज्ञानियों में श्रेष्ठ है।

  • दुर्लभा लोके नरा धर्मप्रदर्शका:।[2]

संसार में धर्म का मार्ग दिखाने वाले लोग दुर्लभ हैं।

  • एको नरसहस्रेषु धर्मविद् विद्यते न वा।[3]

न जाने सहस्रों में भी कोई एक धर्म को जानने वाला है या नहीं।

  • स्वार्थे सर्वे विमुह्मन्ति येऽपि धर्मविदो जना:।[4]

जो धर्म को जानते हैं वे भी स्वार्थ के चक्र में मोहित हो

  • धर्मापेक्षी नरो नित्यं सर्वत्र लभते सुखम्। [5]

(अधर्म से) धर्म को अधिक महत्त्व देने वाला सदा सर्वत्र सुख पाता है।

  • सत्यानृते विनिश्चत्य ततो भवति धर्मविद्।[6]

सत्य और असत्य का निर्णय करने के बाद ऋजु धर्मज्ञानी होता है।

  • धर्माधर्मविशेषज्ञ: सर्वं तरति दुतरम्।[7]

धर्म और अधर्म का विशेषज्ञ सभी संकटो से पार हो जाता है

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 154.14
  2. वनपर्व महाभारत 215.14
  3. वनपर्व महाभारत 215.15
  4. विराटपर्व महाभारत 51.4
  5. द्रोणपर्व महाभारत 85.31
  6. शांतिपर्व महाभारत 109.6
  7. शांतिपर्व महाभारत 235.28

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः