- लोके किं नु न प्राप्यमस्ति।[1]
संसार में ऐसा क्या है जो प्राप्त न किया जा सके।
- क्रियतां यद् भवेच्छक्यम्।[2]
जो सम्भव हो वही कार्य करो।
- सर्वं सम्भाव्यते त्वयि।[3]
तुम में सब सम्भव है। (तुम कुछ भी कर सकते हो।)
- एकांतेन हि सर्वेषां न शक्यं तात रोचितुम्।[4]
तात! कोई भी कार्य सबको अच्छा लगे यह सम्भव नहीं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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