सम्भव (महाभारत संदर्भ)

  • लोके किं नु न प्राप्यमस्ति।[1]

संसार में ऐसा क्या है जो प्राप्त न किया जा सके।

  • क्रियतां यद् भवेच्छक्यम्।[2]

जो सम्भव हो वही कार्य करो।

  • सर्वं सम्भाव्यते त्वयि।[3]

तुम में सब सम्भव है। (तुम कुछ भी कर सकते हो।)

  • एकांतेन हि सर्वेषां न शक्यं तात रोचितुम्।[4]

तात! कोई भी कार्य सबको अच्छा लगे यह सम्भव नहीं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 4.11
  2. वनपर्व महाभारत 135.40
  3. आदिपर्व महाभारत 34.7
  4. शांतिपर्व महाभारत 89.19

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