पाप (महाभारत संदर्भ)

  • फलत्येव ध्रुवं पापं गुरु भुक्तमिवादरे।[1]

जैसे अधिक भोजन का प्रतिकूल फल निश्चित है वैसे ही पाप का भी

  • पापानां कर्मणां नित्यं बिभियाद्।[2]

पापकर्म से नित्य भयभीत रहें।

  • क्षीणपाप: शुभाँल्लोकान् प्राप्नुते नात्र संशय:।[3]

पाप के नष्ट हो जाने पर निश्चय ही शुभ स्थान की प्राप्ति होती है।

  • न पापे प्रतिपाप: स्यात्।[4]

पाप करने वाले के साथ प्रतिशोध में पाप न करें।

  • विकर्मणा तप्यमान: पापाद् विपरिमुच्यते।[5]

पाप करने के बाद जो दु:खी होता है वह पाप से मुक्त हो जाता है।

  • कल्याणमातिष्ठन् सर्वपापै: प्रमुच्यते।[6]

ऋजु कल्याणकारी कर्म करते-करते सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

  • पापं कुर्वन् पापकीर्ति: पापमेवाश्नुते फलम्।[7]

पाप से कुख्यात पापी पाप करता हुआ पाप का ही फल भोगता है।

  • पापं प्रज्ञां नाश्यति क्रियमाणां पुन:-पुन:।[8]

पुन:-पुन: पाप करने से बुद्धि नष्ट हो जाती है।

  • न कर्ण देशसामान्यात् सर्व: पापं निषेवते।[9]

कर्ण! पापियों के देश में सभी पाप नहीं करते।

  • जानता तु कृतं पापं गुरु सर्वं भवति।[10]

जान-बूझ कर किया गया सारा पाप भारी होता है।

  • नैकांतविनिपातेन विचचारेह कश्चं।[11]

ऐसा संसार में कोई नहीं हुआ जिसने कभी पाप न किया हो।

  • न हि पापं कृतं कर्म सद्य: फलति गौरिव।[12]

भूमि में बोये गये बीज की भाँति पाप भी तुरंत फल नहीं देता।

  • अपविध्यंति पापानि दान यज्ञ तपोबल:।[13]

दान, यज्ञ और तप के प्रभाव से पाप नष्ट हो जाते हैं।

  • इच्छयेह कृतं पापं सद्यस्तं चोपसर्पति।[14]

संसार में स्वेच्छा से किये गये पाप का फल शीघ्र ही मिल जाता है।

  • य: कृते प्रति कुर्याद् वै न स तत्रापराध्नुयात्।[15]

पाप के प्रतिकार में पाप करने वाला अपराधी नहीं होता।

  • न पापमात्रेण कृतं हिनस्ति।[16]

एक पाप से जीवनभर के पुण्य नष्ट नहीं हो जाते।

  • हृदयं पापवृत्तानां पापमाख्याति वैकृतम्।[17]

पापियों के हृदय के विकार ही उनके पाप को बता देता है।

  • पापेनापिहितं पापं पापमेवानुवर्तते।[18]

पापी के द्वारा छिपाया गया पाप उसे पुन: पाप में ही लगाता है।

  • पतितैस्तु कथां नेच्छेद् दर्शनं च विवर्जयेत्।[19]

पतित व्यक्ति से बात करने की इच्छा न करें और न उसका दर्शन ही करें।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 80.3
  2. आदिपर्व महाभारत 92.4
  3. वनपर्व महाभारत 130.17
  4. वनपर्व महाभारत 207.45
  5. वनपर्व महाभारत 207.51
  6. वनपर्व महाभारत 207.57
  7. उद्योगपर्व महाभारत 35.60
  8. उद्योगपर्व महाभारत 35.61
  9. कर्णपर्व महाभारत 45.46
  10. शांतिपर्व महाभारत 75.28
  11. शांतिपर्व महाभारत 75.28
  12. शांतिपर्व महाभारत 91.21
  13. शांतिपर्व महाभारत 97.5
  14. शांतिपर्व महाभारत 139.21
  15. शांतिपर्व महाभारत 139.35
  16. शांतिपर्व महाभारत 141.90
  17. शांतिपर्व महाभारत 193.26
  18. शांतिपर्व महाभारत 193.28
  19. अनुशासनपर्व महाभारत 105.106

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