- दु:खमानीय मोदते पापपुरुष:।[1]
पापी दूसरों को दु:ख देकर प्रसन्न होता है।
- विनशिष्यति ये पाप न तु ये धर्मचारिणी:।[2]
पापी नष्ट हो जायेंगे, जो धार्मिक हैं वे नहीं नष्ट होंगे।
- आत्मनैव हत: पापो य: पापं कर्तुमिच्छति।[3]
जो पाप करना चाहता है वह पापी स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
- अधर्मा धर्मरूपेण तृणै: कूपा इवावृता:।[4]
पापी तिनकों से ढके कुओं की भाँति धर्म की आड़ में अधर्म करते है
- पापात्मा क्रोधकामादीन् दोषानाप्नोत्यानात्मवान्।[5]
असन्यमी पापी में काम क्रोध दोष आदि आ जाते हैं।
- भवंत्यल्पायुष: पापा:।[6]
पापियों की आयु कम होती हैं।
- पापं कुर्वन् पापवृत्त: पापस्यांतं न गच्छति।[7]
पाप करता हुआ पापी पाप के अंत को नहीं पाता है।
- मृदुं वै मन्यते पापो भाषमाणमशक्तिकम्।[8]
कोमल वचन बोलने वाले को पापी शक्तिहीन मानता है।
- सर्वोपायैर्निरयंतव्य: सानुग: पापपुरुष:।[9]
पापी को अनुचरों सहित सभी उपायों से नियंत्रण में रखना चाहिये।
- वार्यमाणोपि पापेभ्य: पापात्मा पापमिच्छति।[10]
पापी को पास करने से रोका जाये तो भी वह पाप ही करना चाहता है।
- अप्रजायन् नरव्याघ्र भवत्यधार्मिको नर:।[11]
संतान उत्पन्न न करने वाला नर अधार्मिक होता है।
- पापीयान् हि धनं लब्ध्वा वशे कुर्याद् गरीयस:।[12]
पापी को धन मिल जायेगा तो वह सज्जनों को अपने वश में करेगा।
- प्रीयते हि हरन् पाप: परवित्तम्।[13]
पापी औरों का धन चुरा कर प्रसन्न होता है।
- न कश्चिदस्ति पापानां धर्म इत्येष निश्चय:।[14]
पापियों का यही निश्चय है कि धर्म नाम की कोई वस्तु नहीं होती।
- प्रशांतादपि मे पापाद् भेतव्यं बलिन: सदा।[15]
बलवान् पापी पाप करना छोड़ चुका हो तो भी मुझे सदा डरना चाहिये।
- राहुर्यथा चंद्रमुपैती चापि तथाबुधं पापमुपैति कर्मं।[16]
पापी के पास उसका पाप वैसे ही आ जाता है जैसे चद्रमा के पास राहु
- त्यक्तव्यास्तु दुराचारा: सर्वेषामिति निश्चय:।[17]
सब का यही कि दुराचारी को त्याग देना चाहिये।
- पापमुत्सुजते लोके सर्वं प्राप्य सुदुर्लभम्।[18]
सब कुछ मिल जाये तो भी पापी के पास टिकता नहीं।
- सर्वानार्थ: कुले यत्र जायते पापपुरुष:।[19]
कुल में पापी जन्म लेता है तो सभी अनर्थो का कारण होता है।
- पापमाचक्षते नित्यं हृदयं पापकमिर्ण:।[20]
पापी का हृदय ही उसके पाप को प्रकट कर देता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 27.6
- ↑ आदिपर्व महाभारत 39.9
- ↑ वनपर्व महाभारत 207.45
- ↑ वनपर्व महाभारत 207.59
- ↑ वनपर्व महाभारत 207.76
- ↑ वनपर्व महाभारत 183.73
- ↑ वनपर्व महाभारत 209.41
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 4.6
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 54.4
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 139.8
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 34.14
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 60.30
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 67.13
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 109.27
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 138.177
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 193.29
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 168.2
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 6.42
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 105.9
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 162.53
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