प्रशंसा (महाभारत संदर्भ)

  • सर्वात्मानं प्रशंसति।[1]

अपनी प्रशंसा सभी करते हैं।

  • कर्म तथा कुर्याद्येन श्लाघ्येत संसदि।[2]

जैसा काम करने से सभा में प्रशंसा हो वैसा ही करो।

  • सर्वं सर्वेण सर्वत्र क्रियमाणं च पूजय।[3]

जो जहाँ जैसा भी शुभ कर्म करता हो उसकी प्रशंसा करो।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सौप्तिकपर्व महाभारत 3.4
  2. शांतिपर्व महाभारत 124.68
  3. शांतिपर्व महाभारत 309.20

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