स्त्री (महाभारत संदर्भ)

  • सुसंब्धोपि रामाणां न कुर्यादप्रियं नर:।[1]

व्यक्ति अत्यंत क्रोध आने पर भी नारियों का अप्रिय आचरण न करे।

  • अवध्यां स्त्रियमाहुर्धर्मज्ञा:।[2]

धार्मिकों ने स्त्री को वध के अयोग्य कहा है।

  • भाविन्यर्थे हि सत्स्त्रीणां वैकृतं नोपजायते।[3]

अवश्यम्भावी घटना के लिये साध्वी महिला का मन व्याकुल नहीं होता

  • विशिष्टया विशिष्टेन संगमो गुणवान् भवेत्।[4]

विशिष्ट नारी का विशिष्ट पुरुष से संयोग होता तो गुणकारी होगा

  • वैषम्यमपि सम्प्राप्ता गोपायंति कुलस्त्रिय:।[5]

कुलीन स्त्रियां संकट में पड़कर भी स्वयं अपनी रक्षा करती हैं।

  • न जातु विप्रियं भर्तु: स्त्रिया कार्यं कथंचं।[6]

नारी को किसी भी प्रकार से पति का अप्रिय नहीं करना चाहिये।

  • स्त्रीणां वृत्तं पूज्यते देहरक्षा।[7]

नारियों का अपने शरीर की रक्षा का स्वभाव अच्छा माना जाता है।

  • स्त्रीणां चित्तं च दुर्ज्ञेयम्।[8]

स्त्रियों के हृदय को जानना कठिन है।

  • गति: पति: समस्थाया विषमे च पिता गति:।[9]

सुख के समय में नारी पति के पास रहे और संकट काल में पिता के।

  • अधर्मभिभवात् कृष्ण प्रदुष्यंति कुलस्त्रिय:।[10]

हे कृष्ण! कुलीन स्त्रियां पाप के बढ़ जाने से दूषित हो जाती हैं।

  • सर्वथा स्त्री न हंतव्या सर्वत्त्वेषु केनचित्।[11]

किसी भी प्राणी (मनुष्य या अन्य) की स्त्री को कोई कभी न मारे।

  • न सा स्त्री ह्माभिमंतव्या यस्यां भर्ता न तुष्यति।[12]

उस नारी को नारी नहीं मानना चाहिये जिससे उसका पति संतुष्ट नहीं

  • अदूष्या हि स्त्रिय: रत्नमाप इत्येव धर्मत:।[13]

स्त्री, रत्न और जल धर्म की दृष्टि से दूषित नहीं होते हैं।

  • स्त्रियो नार्हंति वाच्यताम्।[14]

स्त्रियाँ निंदा के योग्य नहीं होती हैं। (स्त्रियों की निंदा नहीं करनी चाहिये)

  • रूपयौवनसौभाग्यं स्त्रीणां बलमुत्तमम्।[15]

रूप, यौवन व सौभाग्य स्त्रियों का परम बल है।

  • स्त्रिया: पुरुषसन्योगे प्रीतिरभ्यधिका सदा।[16]

स्त्री और पुरुष के मिलने में सदा स्त्री को अधिक सुख मिलता है।

  • प्राज्ञस्य पुरुषस्येह यथा वाचस्तथा स्त्रिय:।[17]

नारी ज्ञानी की वाणी जैसी होती है। (सरलता से जानी नहीं जा सकती है)

  • सज्जंति पुरुषे नार्य: पुंसा सोऽर्थश्च पुष्कल:।[18]

महिलायें पुरुष में आसक्त होती है और पुरुषों की भी यही स्थिति है।

  • पूज्या लालयितव्याश्च स्त्रियों नित्यम्।[19]

स्त्रियाँ सदा पूजा और लालन (प्यार और दुलार) के योग्य हैं।

  • स्त्रियो यत्र च पूज्यंते रमंते तत्र देवता:। [20]

जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं।

  • तदा चैतत् कुलं नास्ति यदा शोचंति जामय:।[21]

वहा कुल नष्ट हो जाता है जिसमें नारियां दुख में डूबी रहती हैं।

  • स्त्रीप्रत्ययो हि धर्म:।[22]

पुरुष का धर्म स्त्री पर ही निर्भर है।

  • श्रिय एता: स्त्रियो नाम सत्कार्या भूतिमिच्छता।[23]

महिलायें घर की लक्ष्मी होती हैं ऐश्वर्य का इच्छुक उनका आदर करे।

  • अत्यर्थं न प्रसज्जंते प्रमदासु विपिश्चत:।[24]

विवेकी जन नारियों में अधिक आसक्त नहीं होते।

  • न चेर्ष्या स्त्रीषु कर्तव्या रक्ष्या दाराश्च सर्वश:।[25]

महिलाओं से ईर्ष्या न करें, सब प्रकार से उनकी रक्षा करनी चाहिये।

  • स्त्रियश्चैव विशेषेणे स्त्रीजनस्य गति: परा।[26]

स्त्रियों का आश्रय विशेषकर के स्त्रियाँ ही होती हैं।

  • स्त्री च भूतेश सततं स्त्रियमेवानुधावति।[27]

भूतनाथ! स्त्री सदा स्त्री की ही बात मानती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 74.51
  2. आदिपर्व महाभारत 157.31
  3. सभापर्व महाभारत 79.7
  4. वनपर्व महाभारत 53.31
  5. वनपर्व महाभारत 70.8
  6. वनपर्व महाभारत 233.17
  7. वनपर्व महाभारत 306.23
  8. विराटपर्व महाभारत 19.10
  9. उद्योगपर्व महाभारत 176.8
  10. भीष्मपर्व महाभारत 25.41
  11. शांतिपर्व महाभारत 135.14
  12. शांतिपर्व महाभारत 145.3
  13. शांतिपर्व महाभारत 165.32
  14. शांतिपर्व महाभारत 266.36
  15. शांतिपर्व महाभारत 320.73
  16. अनुशासनपर्व महाभारत 12.52
  17. अनुशासनपर्व महाभारत 38.24
  18. अनुशासनपर्व महाभारत 43.15
  19. अनुशासनपर्व महाभारत 46.5
  20. अनुशासनपर्व महाभारत 46.5
  21. अनुशासनपर्व महाभारत 46.6
  22. अनुशासनपर्व महाभारत 46.10
  23. अनुशासनपर्व महाभारत 46.15
  24. अनुशासनपर्व महाभारत 48.38
  25. अनुशासनपर्व महाभारत 104.37
  26. अनुशासनपर्व महाभारत 146.10
  27. अनुशासनपर्व महाभारत 146.16

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