- न हीनत: परमभ्याददीत।[1]
अनुचित उपाय से शत्रु को भी वश में न करें।
- उपाया: पण्डितै: प्रोक्तास्ते तु दैवमुपाश्रिता:।[2]
पण्डितों ने जो उपाय बताये हैं वे अब भाग्य के अधीन है।
- पश्येदुपायान् विविधै: क्रियापथै:।[3]
अनेक कार्यपद्धतियों से उपायों को ढूँढें।
- न चानुपायेन मतिं निवेशयेत्।[4]
बिना उपाय के कोई काम करने का विचार न करें।
- अविज्ञानादयोगो हि पुरुषस्योपजायते।[5]
ज्ञान के अभाव में मनुष्य को कोई उपाय नहीं दिखाई देता।
- सर्वोपायैरुपायज्ञो दीनमात्मानमुद्धरेत्।[6]
उपाय को जानने वाला सभी उपायों के द्वारा संकट से अपना उद्धार करे।
- न हि खल्वनुपायेन कश्चिदर्थोभिसिद्ध्यति।[7]
उपाय के बिना कोई भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।
- उपायेन शक्येत संनियंतुं चलं मन:।[8]
मन को उपाय से वश में किया जा सकता है।
- उपायज्ञो हि मेधावी सुखमत्यंतमश्नुते।[9]
उपाज को जानने वाला मेधावी (बुद्धिमान्) अत्यंत सुख पाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 87.8
- ↑ कर्णपर्व महाभारत 10.13
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 120.54
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 120.54
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 130.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 141.100
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 203.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 240.27
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 50.18
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