- ननु नाम त्वया कार्या दया भूतेषु जानता।[1]
बुद्धिमान हो, तुम्हें तो जीवों पर दया करनी चाहिये।
- बुद्ध्या स्वप्रतिपन्नेषु कुर्यात् साधुष्वनुग्रहम।[2]
बुद्धि से विचार करके अपनी शरण में आये सज्जनों पर दया करें।
- दया सर्वसुखैषित्वम्।[3]
सब के सुख की इच्छा करना दया है।
- अर्थाच्च कामाच्च आनृशंस्यं परं मतम्।[4]
अर्थ और काम से दया श्रेष्ठ मानी जाती है।
- अनुक्रोशो हि साधुनां महद्धर्मस्य लक्षणम्।[5]
साधु जो दया करते हैं उनका दया करना धर्म का महान् लक्षण है
- पापप्रकृतिर्बाले न कुरुते दयाम्।[6]
जो स्वभाव से पापी है वह बालक पर भी दया नहीं करता।
- आनृशंस्यं परो धर्म:।[7]
दया सबसे बड़ा धर्म है।
- दयां नर: कुर्यात् यथाऽऽत्मनि तथा परे।[8]
जैसे मनुष्य अपने ऊपर दया चाहता है वैसे ही दूसरों पर भी करें
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 146.87
- ↑ वनपर्व महाभारत 150.48
- ↑ वनपर्व महाभारत 313.90
- ↑ वनपर्व महाभारत 313.133
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 5.24
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 27.13
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 47.20
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 116.8
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