पराक्रम (महाभारत संदर्भ)

  • गुणीभूता गुणा: सर्वे तिष्ठन्ति हि पराक्रमे।[1]

सभी गुण पराक्रम में उसका अंग बनकर रहते हैं।

  • नयो जयो बलं चैव विक्रमे सिद्धिमेष्यति।[2]

नीति, विजय और बल तीनों के सहयोग से सिद्धि मिलेगी।

  • भूयिष्ठं कर्मयोगेषु दृष्ट एव पराक्रम:।[3]

कर्म करने की सभी युक्तियों में पराक्रम को ही अच्छा माना जाता है।

  • हंत्यनर्थं पराक्रम:।[4]

पराक्रम अनर्थ को दूर भगाता है।

  • अपि वा संशयं प्राप्य जीवेतेऽपि पराक्रमे:।[5]

जीवन भी संशय में पड़ जाये तो भी पराक्रम ही करो।

  • अनुक्त्वा विक्रमेत् यस्तु तद् वै सत्पुरुषव्रतम्।[6]

बिना बोले पराक्रम करके दिखाना ही सत्पुरुषों का व्रत है।

  • सर्वं व्यपोह्मार्थं कार्य एवं पराक्रम:।[7]

सारी बाते त्यागकर पराक्रम ही करना चाहिये।

  • देशकालौ समासाद्य विक्रमेत विचक्षण:।[8]

विद्वान स्थान और समय को अपने अनुकूल पाकर पराक्रम करें।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 16.11
  2. सभापर्व महाभारत 20.20
  3. वनपर्व महाभारत 32.54
  4. उद्योगपर्व महाभारत 39.42
  5. उद्योगपर्व महाभारत 133.10
  6. द्रोणपर्व महाभारत 158.19
  7. शांतिपर्व महाभारत 139.84
  8. शांतिपर्व महाभारत 140.28

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