मार्ग (महाभारत संदर्भ)

  • पंथाश्च वो नाविदित: कश्चिद् स्याद्।[1]

कोई मार्ग तुम्हारे लिये अविदित (अपरिचित) ना हो।

  • अंधस्य पन्था:बधिरस्य पन्था:स्त्रिय:पन्था:भारवाहस्य पन्था:।[2]

नयन या कान से रहित, स्त्री और भार ढोने वाले को मार्ग देना चाहिये।

  • विशिष्टस्य पन्था उपदिश्यते समर्थाय वा।[3]

गुणवान् या शक्तिशाली को मार्ग देना चाहिये यह उपदेश किया गया है।

  • महाजनो येन गत: स पन्था:।[4]

महापुरुष जिस मार्ग पर चलते रहे हैं वही मार्ग है।

  • सद्भिर्विगर्हितं मार्गं त्यज मूर्खनिषेवितम्।[5]

जिस मार्ग पर मूर्ख चलते हैं तथा सज्जन निंदा करते हैं उसे त्याग दो।

  • उत्पथप्रतिपन्नस्य परित्यूगो विधीयते।[6]

कुमार्ग पर चलने वाले को त्याग देना चाहिये।

  • धर्म्यं देशय पन्थानम्।[7]

धर्म के अनुकूल मार्ग का उपदेश करो।

  • पितृपैतामहं मार्गमनुयाहि।[8]

बाप-दादाओं के मार्ग पर चलो।

  • आचार्यानुगतो मार्ग: शिष्यैरंवास्यते सदा।[9]

शिष्य लोग सदा गुरु के मार्ग पर चलते रहे हैं।

  • न त्वं कापुरुषाचीर्णं मार्गमास्थातुमर्हसि।[10]

जिस मार्ग पर भीरू चला करते हैं तुम उस पर मत चलो।

  • पथ: प्रच्युतो धर्मात् कुपथे प्रतिहन्यते।[11]

धर्म के मार्ग से पथभ्रष्ट होकर कुमार्ग पर चलने वाला मारा जाता है।

  • चिकित्स्य: स्याद् य उन्मार्गेण गच्छति।[12]

जो कुमार्ग पर चलता है उसकी चिकित्सा करनी चाहिये।

  • पूर्वे समुद्रे य: पन्था: स न गच्छति पश्चिमम्।[13]

पूर्व समुद्र की ओर जो मार्ग जाता है वह पश्चिम को नहीं जाता है।

  • गतं गच्छन्ति चाध्वानं सर्वभूतानि सर्वदा।[14]

सभी प्राणी सदा उसी मार्ग पर ही चलते हैं जिस पर कभी कोई चला हो।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 144.32
  2. वनपर्व महाभारत 133.1
  3. वनपर्व महाभारत 194.3
  4. वनपर्व महाभारत 313.117
  5. उद्योगपर्व महाभारत 135.8
  6. उद्योगपर्व महाभारत 178.48
  7. भीष्मपर्व महाभारत 3.53
  8. द्रोणपर्व महाभारत 74.28
  9. द्रोणपर्व महाभारत 113.33
  10. कर्णपर्व महाभारत 90.110
  11. सौप्तिकपर्व महाभारत 6.21
  12. शांतिपर्व महाभारत 14.35
  13. शांतिपर्व महाभारत 274.4
  14. शांतिपर्व महाभारत 279.22

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