वित्त (महाभारत संदर्भ)

  • प्रसह्म वित्ताहरणं न कल्क:।[1]

कष्ट से उपाएजित किया गया धन निर्मल होता है।

  • ये वित्तमभिपद्यंते सम्यक्त्वं तेषु दुर्लभम्।[2]

जो धन पीछे पड़े रहते हैं उनमें पवित्रता दुर्लभ है।

  • न हिंस्यात् पर्वित्तानि।[3]

दूसरों के धन को नष्ट न करे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत1.275
  2. शांतिपर्व महाभारत 26.20
  3. शांतिपर्व महाभारत 57.12

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