स्वभाव = प्रवृति या आदत
- स्वभाव एष लोकानां विकारोऽन्य इति स्मृत:।[1]
(क्रोध आदि) विकार तो लोगों का स्वभाव माना गया है।
- सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।[2]
ज्ञानी भी अपनी प्रकृति के अनुसार ही कार्य करता है।
- स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते। भीष्मपर्व महाभारत 32.3
स्वभाव को अध्यात्म कहते हैं। (अध्यात्म= आत्मा या मन से सम्बंधित)
- पुरुषाणां प्रदुष्टानां स्वभावो बलवत्तर:।[3]
दुष्टों का स्वभाव अति बलवान् होता है।
- स्वभावस्रोतसा व्रत्तमुह्यते सततं जगत्।[4]
संसार स्वभाव से ही निरन्तर धारा में बहा जा रहा है।
- अर्थानिष्टान् कामयते स्वभाव:।[5]
प्रिय वस्तु की कामना करना स्वभाव है।
- सर्वान् द्वेष्यान् प्रद्विषते स्वभाव है।[6]
द्वेष के योग्य से द्वेष करना स्वभाव है।
- कामद्वेषावुद्भवत: स्वभावात्।[7]
काम और द्वेष स्वभाव से उत्पन्न होते हैं।
- स्वभाव: क्षर उच्यते।[8]
जिसका विनाश होता है वह स्वभाव कहलाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 307.15
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 27.33
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 103.51
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 235.13
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 28.2
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 28.2
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 28.2
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 28.22
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