आचार्य (महाभारत संदर्भ)

आचार्य[1]
  • आचार्या वै कारुणिका प्राज्ञाश्चापापदर्शिन:।[2]

आचार्य लोग दयालु तथा बुद्धिमान् होते हैं किसी के पाप को नहीं देखते।

  • आचार्यो नाभिवक्तव्य: पुरुषेण विजानता।[3]

बुद्धिमान् व्याक्ति को आचार्य की निन्दा नहीं करनी चाहिये।

  • आचार्यशास्ता या जाति: सा पुण्या साजरामरा।[4]

आचार्य के उपदेश के बाद मिला नया जीवन पवित्र, अजर और अमर है।

  • आचार्यस्य प्रियं कुर्यात् प्राणैपरि धनैरपि।[5]

अपने प्राण और धन लगाकर भी आचार्य का प्रिय करें।

  • आचार्याणा भवन्त्येव रहस्यानि।[6]

आचार्यो के पास रहस्य होते ही हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुरु किसी भी बड़े को या ज्ञान देने वाले को कहा जाता है और आचार्य केवल ज्ञान देने वाले को कहा जाता है, प्रत्येक बड़े को नहीं।
  2. विराटपर्व महाभारत 47.28
  3. विराटपर्व महाभारत 51.2
  4. उद्योगपर्व महाभारत 44.8
  5. उद्योगपर्व महाभारत 44.12
  6. द्रोणपर्व महाभारत 194.6

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