युद्ध (महाभारत संदर्भ)

  • न चापि कंचिदमरमयुद्धेनानुशुश्रुम:।[1]

हमने यह नहीं सुना है कि युद्ध न होने के कारण कोई अमर हो गया हो।

  • अनयस्यानुपायस्य सन्युगे परम: क्षय:।[2]

अच्छे उपाय और नीति से काम न लिया जाये तो युद्ध में भारी हानि है।

  • सत्त्वे कुरुते युद्धे राजन् सुबलवानपि।[3]

राजन्! अति बलवान् मनुष्य भी बुद्धिबल से ही युद्ध करता है।

  • सदा भाव्यं स्थिरेणाजौ।[4]

युद्ध में सदा स्थिर रहना चाहिये।

  • ध्रुवं विनाशो युद्धेन।[5]

युद्ध से निश्चय ही विनाश होता है।

  • युद्धं तु पापीष्ठं वेदयंति पुराविद:।[6]

प्राचीन ज्ञानी युद्ध को सबसे अधिक पापपूर्ण कर्म कहते हैं।

  • देशकालेन सन्युक्त युद्धं विजयदं भवेत्।[7]

स्थान और समय उचित हों तो युद्ध में विजय मिलती है।

  • युद्धेऽनयो भविता नेह सोऽर्थ:।[8]

युद्ध में अनीति होती है तथा अनीति से संसार में कोई लाभ नहीं होता

  • नाश्रेयानीश्वरो विग्रहाणाम्।[9]

दो युद्ध करने वालों में जो अधिक श्रेष्ठ है उसको विजय मिलती है।

  • न हि युद्धं प्रशंसंति सर्वावस्थम्।[10]

किसी भी स्थिती में युद्ध की प्रशंसा नहीं की जाती।

  • न युद्धे तात कल्याणं न धर्मार्थौ कुत: सुखम्।[11]

तात! युद्ध में न कल्याण है न धर्म और अर्थ ही है, फिर सुख कहाँ?

  • मा युद्धे चेत आधिथा:।[12]

युद्ध में मन मत लगाओ।

  • ननु नाम समं युद्धोमेष्टव्यं युद्धजीविभि:।[13]

युद्धजीवी समान योद्धा से युद्ध करने की इच्छा करे (दुर्बल से नहीं)

  • अनादिष्ट्स्तु गुरुणा को नु युध्यते मानव:।[14]

गुरु की आज्ञा के बिना कौन मनुष्य युद्ध करेगा?

  • कोऽन्य: स्थास्थति संग्रामे भीतो भीते व्यपाश्रये।[15]

आश्रय देने वाला ही डर जायेगा तो संग्राम में कौन रुकेगा?

  • नह्मेको बहुभिर्न्याय्यो वीरो योधयितुं युधि।[16]

युद्ध में अनेक वीरों का किसी एक से लड़ना यायोचित नहीं।

  • राज्ञा विशेषेण योद्धव्यं धर्ममीप्सता।[17]

राजा को धर्म के लिये अवश्य युद्ध करना चाहिये।

  • संनिपातो न मंतव्य: शक्ये सति कथंचन।[18]

संधि सम्भव हो, तब तक युद्ध को स्वीकार नहीं करना चाहिये।

  • सान्त्वभेदप्रदानानां युद्धमुत्तरमुच्यते।[19]

फूट, दान और शांतिप्रयास तीनों के विफल होने, पर ही युद्ध किया जाये

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 17.2
  2. सभापर्व महाभारत 17.5
  3. वनपर्व महाभारत 33.63
  4. वनपर्व महाभारत 173.73
  5. विराटपर्व महाभारत 46.29
  6. विराटपर्व महाभारत 49.2
  7. विराटपर्व महाभारत 49.3
  8. उद्योगपर्व महाभारत 2.14
  9. उद्योगपर्व महाभारत 26.7
  10. उद्योगपर्व महाभारत 58.2
  11. उद्योगपर्व महाभारत 129.40
  12. उद्योगपर्व महाभारत 129.40
  13. द्रोणपर्व महाभारत 52.6
  14. द्रोणपर्व महाभारत 112.14
  15. द्रोणपर्व महाभारत 122.13
  16. शल्यपर्व महाभारत 32.52
  17. शांतिपर्व महाभारत 60.18
  18. शांतिपर्व महाभारत 102.22
  19. शांतिपर्व महाभारत 102.22

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