आपदा (महाभारत संदर्भ)

  • तथा कुर्यादापदं निस्तरेद् यथा। [1]

वैसा कर्म करो जिससे आपत्ति से पार हो सके।

  • परमापद्गतस्यापि नाधर्मे मे मरिर्भवेत्। [2]

बहुत बड़ा संकट आने पर भी मेरे मन में पाप का विचार न आये।

  • नापदामस्ति मर्यादा न निमित्तं न कारणम्। [3]

आपत्तियों की कोई मर्यादा, आधार और कारण नहीं है। (केवल कर्मफल)

  • आपदर्थे धनं रक्षेद् धनैरपि। [4]

आपत्तियों के लिये धन को सुरक्षित रखें, धन से नारी की रक्षा करें।

  • न च प्रियतरं कार्यं धनं कस्याञ्चिदापदि। [5]

संकट के समय धन को प्रिय मानकर उसका व्यय न करना उचित नहीं।

  • आपद्विनाशभूयिष्ठंगतै: कार्यं हि जीवितम्। [6]

संकट में विनाश के निकट होने पर प्राण रक्षा का यत्न करना चाहिये।

  • कानापदो नोपनमंति लोके। [7]

संसार में आपत्तियाँ किन के पास नहीं आती हैं?

पाठ पढ़ने मात्र से आपत्तियाँ कैसे जानी जा सकती हैं।

जो दूसरे प्रवक्ताओं से प्रश्न करता रहता है वह संकट में नहीं पड़ता।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 144.21
  2. वनपर्व महाभारत 275.30
  3. वनपर्व महाभारत 312.1
  4. उद्योगपर्व महाभारत 37.18
  5. शान्तिपर्व महाभारत 87.33
  6. शान्तिपर्व महाभारत 138.36
  7. शान्तिपर्व महाभारत 226.14

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