उद्यम = परिश्रम
- सर्वे हि स्वं समुत्थानुपजीवंति जंतव:।[1]
सभी प्राणी अपने उद्यम के आश्रय से ही जीवन निर्वाह करते हैं।
- उत्थानवीरान् वाग्वीरा रमयंत उपासते।[2]
वाक्शूर उद्यमी जनों की चाटुकारिता करते हुए उनकी उपासना करते हैं।
- उद्यमो ह्मेव पौरुषम्।[3]
उद्यम ही पौरुष है।