उद्यम (महाभारत संदर्भ)

उद्यम = परिश्रम

  • सर्वे हि स्वं समुत्थानुपजीवंति जंतव:।[1]

सभी प्राणी अपने उद्यम के आश्रय से ही जीवन निर्वाह करते हैं।

  • उत्थानवीरान् वाग्वीरा रमयंत उपासते।[2]

वाक्शूर उद्यमी जनों की चाटुकारिता करते हुए उनकी उपासना करते हैं।

  • उद्यमो ह्मेव पौरुषम्।[3]

उद्यम ही पौरुष है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 32.7
  2. शांतिपर्व महाभारत 58.15
  3. शांतिपर्व महाभारत 133.9

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