श्रुति (महाभारत संदर्भ)

श्रुति = वेद

  • शीलवृत्तफलं श्रुतम।[1]

श्रुति का फल है अच्छा स्वभाव और सदाचार।

  • श्रुतिप्रमाणो धर्म: स्यादिति वृद्धानुशासनम्।[2]

वेदों के द्वारा प्रमाणित हो वही धर्म है यह वृद्धों का अनुशासन है।

  • धनानामुत्तमं श्रुतम्।[3]

शास्त्र का ज्ञान सबसे बड़ा धन है।

  • श्रुतेन ज्ञायते सर्वम्।[4]

श्रुति के सबकुछ जाना जाता है।

  • य: कश्चिन्न्याय्य आचार: सर्वं शास्त्रमिति श्रुति:।[5]

जो कोई न्यायोचित आचरण है वह सब शास्त्र है, ऐसी श्रुति है।

  • यदन्याय्यमशास्त्रं तदित्येषा श्रूयते श्रुति:।[6]

जो अन्यायपूर्ण आचरण है वह शास्त्र विरुद्ध है ऐसी श्रुति है।

  • यदन्यद् वेदवादेभ्यस्तदशास्त्रमिति श्रुति:।[7]

जो वेद के वचनों के विरुद्ध है वह शास्त्र नहीं है ऐसी श्रुति है।

  • श्रुतेन किं येन न धर्ममाचरेत्।[8]

शास्त्रज्ञान से क्या लाभ जिसके द्वारा मनुष्य धर्म का पालन न कर सके।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 5.113
  2. वनपर्व महाभारत 206.41
  3. वनपर्व महाभारत 313.74
  4. द्रोणपर्व महाभारत 69.21
  5. शांतिपर्व महाभारत 269.58
  6. शांतिपर्व महाभारत 269.58
  7. शांतिपर्व महाभारत 269.59
  8. शांतिपर्व महाभारत 321.93

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