दाता (महाभारत संदर्भ)

  • पानीयदा ह्मतृषिता:।[1]

जल का दान करने वाले प्यासे नहीं रहते।

  • दाता नापात्रवर्षी स्यात्।[2]

दान दे परंतु अपात्र (आयोग्य) को नहीं।

  • सहस्रगुणमाप्नोति गुणाहार्य प्रदायक:।[3]

गुणवान् को दान देने वाला सहस्र गुणा फल पाता है।

  • दानरता: दुगाण्यतितरंति।[4]

जो दान देते रहते है वे संकट से पार हो जाते हैं।

  • अन्नद: पशुमान् पुत्री धनवान् भोगवानपि।[5]

अन्न का दान करने वाला संतान, पशु, धन और भोग पाता है।

  • यदेव ददत: पुण्यं तदेव प्रतिगृह्मत:।[6]

दाता को जो पुण्य मिलता है वही लेने वाले को भी मिलता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 200.54
  2. शांतिपर्व महाभारत 70.4
  3. अनुशासनपर्व महाभारत 22.37
  4. अनुशासनपर्व महाभारत 31.31
  5. अनुशासनपर्व महाभारत 63.25
  6. अनुशासनपर्व महाभारत 121.14

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