धर्म त्याग से हानि (महाभारत संदर्भ)

  • धर्मादपेतस्यु कथं विवर्धेत्।[1]

धर्म से दूर रहकर किसी की वृद्धि कैसे हो सकती है।

  • धर्म एव हतो हंति।[2]

धर्म का पालन न करने वाले का धर्म विनाश कर देता है।

  • धर्मो हंति हत: श्रियम्।[3]

नष्ट हुआ धर्म सम्पत्ति को नष्ट कर देता है।

  • धर्मप्रणाशे भूतानामभाव: स्यान्न संशय:।[4]

धर्म का नाश होने पर नि:संदेह प्राणियों का भी विनाश हो जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 119.8
  2. वनपर्व महाभारत 313.128
  3. उद्योगपर्व महाभारत 72.19
  4. अनुशासनपर्व महाभारत 61.20

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