प्रमाद (महाभारत संदर्भ)

प्रमाद = असावधानी

  • धर्मार्थयोर्नित्यं न प्रमाद्यंति पण्डिता:।[1]

धर्म और अर्थ उपार्जन में विद्वान कभी प्रमाद नहीं करते।

  • मोक्षाय प्रयतध्वमतंद्रिता:।[2]

सावधान हो कर मोक्ष के लिये प्रयत्न करे।

  • प्रमादमवलेपं च कोपं च परिवर्जयेत्।[3]

प्रमाद, अभिमान और क्रोध को त्याग दो।

  • न हि प्रमादात् परमस्ति कश्चिद् वधो नराणामिह जीवलोके।जीवलोके।[4]

प्रमाद से बढ़कर संसार में मनुष्यों के लिये और कोई मृत्यु नहीं है।

  • नैकांतेन प्रमादो हि शक्यं कर्तुम्।[5]

निरंतर सावधान नहीं रहा जा सकता।

  • सर्व एव प्रमाद्यंति यदा राजा प्रमाद्यंति।[6]

यदि राजा असावधान हो जाता है तो कोई सावधान नहीं रहता।

  • आदेहादप्रमादाच्च देहांताद् प्रमुच्यते।[7]

आजीवन प्रमाद न करे तो मरने पर मोक्ष हो जाता है।

  • प्रमादस्त्वपराध्यति।[8]

प्रमाद अपराध की जड़ है।

  • ह्मप्रमादोऽपराभव:।[9]

प्रमादरहित की हार नहीं होती।

  • अप्रमादाद् भयं जह्माद् दम्भं प्राज्ञोपसेवनात्।[10]

सावधानी से भय का त्याग करे और विद्वानों के सेवन से दम्भ का।

  • अप्रमादस्त्वाया कार्य सर्वथा:।[11]

सब प्रकार से सावधान रहो।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 33.28
  2. वनपर्व महाभारत 243.10
  3. विराटपर्व महाभारत 4.23
  4. सौप्तिकपर्व महाभारत 10.19
  5. शांतिपर्व महाभारत 82.27
  6. शांतिपर्व महाभारत 91.8
  7. शांतिपर्व महाभारत 217.22
  8. शांतिपर्व महाभारत 266.50
  9. शांतिपर्व महाभारत 269.36
  10. शांतिपर्व महाभारत 240.7
  11. आश्रमवासिकपर्व महाभारत 5.8

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