- सांत्वं सदा वाच्यम्।[1]
सदा सांत्वनापूर्ण वाणी बोलें।
- साम्ना जीतोऽर्थोऽर्थकरो भवेत्।[2]
शांति से जो प्रयोजन सिद्ध हो उसका परिणाम अच्छा रहता है।
- या प्रणिपातेन शांति: सैव गरीयसी।[3]
नमन से यदि शांति मिले तो वह उत्तम है।
- सांत्वयेन्न च मोक्षाय।[4]
सांत्वना तो दें परंतु जान छुड़ाने के लिये नहीं।
- साम्नैव लिप्सेथा धनम्।[5]
सांत्वनापूर्ण उपाय से ही धन पाने की इच्छा करो।
- सर्वलोकमिमं शक्त सांत्वेन कुरुते वशे।[6]
समर्थ पुरुष सांत्वना से सारे संसार को वश में कर लेता है।
- समर्थ पुरुष सांत्वपूर्वं समाचरेत्।[7]
सब अवस्थाओं में सांत्वनापूर्ण व्यवहार करना चाहिये।
- सांत्वद: सर्वभूतानां सर्वशोकैर्विमुच्यते।[8]
सभी प्राणियों को सांत्वना देने वाला सभी शोकों से मुक्त हो जाता है।
- साम्ना प्रसाद्यते कश्चिद् दानेन च तथा पर:।[9]
कुछ लोग मीठे वचनों से प्रसन्न किये जा सकते हैं कुछ दान से।
- दारुणान्यपि भूतानि सांत्वेनाराधयेत्।[10]
भयंकर प्राणियों को सांत्वना से अपने अनुकूल करें।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 87.13
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 2.14
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 72.68
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 70.10
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 71.21
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 83.45
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 102.39
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 57.21
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 124.4
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 124.3
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज