विधान (महाभारत संदर्भ)

  • सर्व एव नरश्रेष्ठ विधानमनुवर्तते।[1]

नरश्रेष्ठ! सब लोग विधि के विधान का ही अनुसरण करते हैं।

  • शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।[2]

शास्त्र के विधान में कहा गया है कर्म करना चाहिये।

  • न च सर्वं विधीयते।[3]

सभी कर्मों का विधान नहीं किया गया है।

  • अर्थोनर्थौ सुखं दु:खं विधानमनुवर्तते।[4]

अर्थ, अनर्थ, सुख और दु:ख- सब विधान के अनुसार मिलते रहते हैं।

  • सुशीघ्रमपि धावंतं विधानमनुधावति।[5]

विधान तेजी से दौड़ने वाले के भी पीछे दौड़ता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 81.12
  2. भीष्मपर्व महाभारत 40.24
  3. कर्णपर्व महाभारत 69.56
  4. शांतिपर्व महाभारत 28.18
  5. शांतिपर्व महाभारत 181.8

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