- सर्व एव नरश्रेष्ठ विधानमनुवर्तते।[1]
नरश्रेष्ठ! सब लोग विधि के विधान का ही अनुसरण करते हैं।
- शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।[2]
शास्त्र के विधान में कहा गया है कर्म करना चाहिये।
- न च सर्वं विधीयते।[3]
सभी कर्मों का विधान नहीं किया गया है।
- अर्थोनर्थौ सुखं दु:खं विधानमनुवर्तते।[4]
अर्थ, अनर्थ, सुख और दु:ख- सब विधान के अनुसार मिलते रहते हैं।
- सुशीघ्रमपि धावंतं विधानमनुधावति।[5]
विधान तेजी से दौड़ने वाले के भी पीछे दौड़ता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 81.12
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 40.24
- ↑ कर्णपर्व महाभारत 69.56
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 28.18
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 181.8
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