देव (महाभारत संदर्भ)

  • देवा प्रसादं न: करिष्यंति न संशय:।[1]

देवता हम पर अवश्य ही कृपा करेंगे।

  • विप्रियं ह्माचरन् मर्त्यो देवानां मृत्युमृच्छति।[2]

देवताओं का अप्रिय कर्म करने वाला मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है।

  • बुभुत्सव: शुचिकामा हि देवा नाश्रद्दधानादि हविर्जुषंति।[3]

भाव और पवित्रता जानने के इच्छुक देवता श्रद्धाहीन का भोग नहीं लेते।

  • न तु देवं समाहूय न्याय्यं प्रेषयितुं वृथा।[4]

देवता को बुला कर उसे व्यर्थ लौटा देना न्याय की बात नहीं।

  • अर्चेद् देवानदम्भें।[5]

दम्भ त्याग कर देवताओं की पूजा करो। (दम्भ=होना कुछ, दिखाना कुछ)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 49.55
  2. वनपर्व महाभारत 56.7
  3. वनपर्व महाभारत 186.18
  4. वनपर्व महाभारत 306.13
  5. अनुशासनपर्व महाभारत 162.62

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