- दर्शने दर्शने नित्यं सुखप्रश्नमुदाहरेत्।[1]
मृदु जब-जब भी मिले ऋजु उससे उसका कुशल समाचार पूछे।
- भूतानां प्रतिकूलेभ्यो निवर्तस्व।[2]
किसी भी प्राणी के प्रति दु:खदायी व्यवहार करना छोड़ दो।
- सदृशं दीयतां मूल्यम्।[3]
उचित मूल्य देना चाहिये।
- न नग्न: स्नातुमर्हति।[4]
नग्न होकर स्नान न करे।
- स्वप्तव्यं नैव नग्नेन।[5]
नग्न होकर न सोये।
- अवलोक्यो न चादर्शो मलिन:।[6]
मलिन दर्पण नहीं देखना चाहिये।
- न दिवा मैथुनं गच्छेत्।[7]
दिन में संभोग न करे।
- अनर्चिते ह्यनायुष्यं गमनम्।[8]
जहाँ आदर न हो वहाँ जाने से आयु की हानि होती है।
- निषाण्णश्चापि खादेत न तु गच्छन् कदाचन।[9]
भोजन बैठ कर ही खायें चलते फिरते कभी नहीं।
- न तत् परस्य संदध्यात् प्रतिकूलं यदात्मन:।[10]
जो व्यवहार आप को अच्छा नहीं लगता हो वह दूसरों के साथ न करें
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 193.19
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 309.5
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 51.7
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.66
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.67
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.47
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.107
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.142
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.60
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 113.8
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