व्यवहार (महाभारत संदर्भ) 3

  • दर्शने दर्शने नित्यं सुखप्रश्नमुदाहरेत्।[1]

मृदु जब-जब भी मिले ऋजु उससे उसका कुशल समाचार पूछे।

  • भूतानां प्रतिकूलेभ्यो निवर्तस्व।[2]

किसी भी प्राणी के प्रति दु:खदायी व्यवहार करना छोड़ दो।

  • सदृशं दीयतां मूल्यम्।[3]

उचित मूल्य देना चाहिये।

  • न नग्न: स्नातुमर्हति।[4]

नग्न होकर स्नान न करे।

  • स्वप्तव्यं नैव नग्नेन।[5]

नग्न होकर न सोये।

  • अवलोक्यो न चादर्शो मलिन:।[6]

मलिन दर्पण नहीं देखना चाहिये।

  • न दिवा मैथुनं गच्छेत्।[7]

दिन में संभोग न करे।

  • अनर्चिते ह्यनायुष्यं गमनम्।[8]

जहाँ आदर न हो वहाँ जाने से आयु की हानि होती है।

  • निषाण्णश्चापि खादेत न तु गच्छन् कदाचन।[9]

भोजन बैठ कर ही खायें चलते फिरते कभी नहीं।

  • न तत् परस्य संदध्यात् प्रतिकूलं यदात्मन:।[10]

जो व्यवहार आप को अच्छा नहीं लगता हो वह दूसरों के साथ न करें

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व महाभारत 193.19
  2. शांतिपर्व महाभारत 309.5
  3. अनुशासनपर्व महाभारत 51.7
  4. अनुशासनपर्व महाभारत 104.66
  5. अनुशासनपर्व महाभारत 104.67
  6. अनुशासनपर्व महाभारत 104.47
  7. अनुशासनपर्व महाभारत 104.107
  8. अनुशासनपर्व महाभारत 104.142
  9. अनुशासनपर्व महाभारत 104.60
  10. अनुशासनपर्व महाभारत 113.8

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